Book Title: Panchsangraha Part 07
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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संक्रम आदि करणत्रय-प्ररूपणा अधिकार : परिशिष्ट १
२६५
अणुवसमित्ता मोहं सायस्स असायअंतिमे बंधे। पणतीसा य सुभाणं अपुव्वकरणालिगा अंते ॥११४॥ तेवट्ठ उदहिसयं गेविज्जाणुत्तरे सऽबंधित्ता। तिरिदुगउज्जोयाइं अहापवत्तस्स अंतंमि ।।११।। इगिविगलायवथावरचउक्कमबंधिऊण पणसीयं । अयरसयं छट्ठीए बावीसयरं जहा पुव्वं ॥११६॥ दुसराइतिण्णि णीयऽसुभखगइ संघयण संठियपुमाणं । सम्माजोग्गाणं सोलसण्हं सरिसं थिवेएणं ।।११७॥ समयाहिआवलीए आऊण जहण्णजोग बंधाणं । उक्कोसाऊ अंते नरतिरिया उरलसत्तस्स ॥११८।। पुसंजलणतिगाणं जहण्णजोगिस्स खवगसेढीए। सगचरिमसमयबद्धं जं छुमइ संगतिमे समए ॥११६।।
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