Book Title: Panchsangraha Part 07
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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परिशिष्ट : ७ ] प्रकृति संक्रम की अपेक्षा संक्रम्यमाण १५४ प्रकृतियों के संक्रम स्वामी [ पंचसंग्रह भाग : ७ | ३१३
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संक्रम्यमाण प्रकृति नाम
स्वामित्व
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ज्ञानावरणपंचक, दर्शनावरणनवक, नीचगोत्र, सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान पर्यन्त के जीव अन्तरायपंचक, असातावेदनीय तथा तीर्थंकर व यशःकीति को छोड़कर शेष नामकर्म प्रकृति सातावेदनीय
प्रमत्तसंयतगुणस्थान पर्यन्त के जीव मिथ्यात्वमोहनीय
अविरत सम्यग्दृष्टि से लेकर उपशांतमोह ाणस्थान
पर्यन्त के जीव मिश्रमोहनीय
मिथ्यात्व एवं अविरतसम्यग्दृष्टि से लेकर उपशांत
मोह गुणस्थान पर्यन्त के जीव सम्यक्त्वमोहनीय
मिथ्यात्व गुणस्थानवी जीव अनन्तानुबंधिकषायचतुष्क
अप्रमत्तसंयत गुणस्थान तक के जीव । आदि के दो
गणस्थानों में निश्चित, शेष में भजनीय अप्रत्याख्यानाबरण आदि शेष बारह कषाय, अनिवृत्तिवादरसंपराय गूणस्थान तक के जीव नवनोकषाय यशःकीर्तिनाम
अपूर्वकरण गुणस्थान के छठे भाग तक के जीव तीर्थकर नाम
दूसरे और तीसरे को छोड़कर पहले और चौथे से
दसवें गुणस्थान तक के जीव उच्चगोत्र
आदि के दो गुणस्थानवर्ती के जीव
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