Book Title: Panchsangraha Part 07
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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मोहनीय
अभव्यापेक्षा
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। अनादि. मिथ्यादृष्टि की अपेक्षा
२५ प्रकृतिक सम्यक्त्व. मिश्र भव्यापेक्षा
मोह की उद्वलना होने
पर होने से २३, २२, २१, २०, कादाचित्क २१,२१,२०, कादाचित्ककादाचित्क १६, १८, १४, होने से
होने से १३, १२, ११, १०, ६, ८, ७, । ६, ५, ४, ३, २,
१ प्रकृतिक । १ प्रकृतिक परावर्तमान | परावर्तमान
बंधी होने से बंधी होने से १ प्रकृतिक
उच्चगोत्र
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नीचगोत्र
नोट-आयुकर्म में परस्पर संक्रम नहीं होने से संक्रमस्थान नहीं होते हैं।
नामकर्म के संक्रमस्थानों की साद्यादि प्ररूपणा का प्रारूप आगे देखिये ।
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परिशिष्ट : ३ ]
[ पंचसंग्रह भाग : ७ | ३०३