Book Title: Panchsangraha Part 07
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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परिशिष्ट : ३ ] प्रकृतिसंक्रम की अपेक्षा आयु व नामकर्म के अतिरिक्त ज्ञानावरणादि [ पंचसंग्रह भाग : ७ | ३०२
छह कर्मों के संक्रम स्थानों की साद्यादि प्ररूपणा
कर्मप्रकृति
संक्रमस्थान
सादि
अध्रुव
अनादि
ध्रुव
ज्ञानावरण
५ प्रकृतिक
| उपशांतमोह गण. भव्यापेक्षा से गिरने पर
| उपशांतमोह गुण. अप्राप्तापेक्षा
अभव्यापेक्षा
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अन्तराय दर्शनावरण
५ प्रकृतिक प्रकृतिक
"
६ प्रकृतिक १ प्रकृतिक
अत्यक्त मिथ्या
त्वापेक्षा कादाचित्क होने से कादाचित्क होने से
परावर्तमान परावर्तमान - प्रकृति होने से प्रकृति होने से ।
असातावेदनीय
सातावेदनीय मोहनीय
- १ प्रकृतिक
२७ प्रकृतिक
Xxxxx
अमुककाल पर्यन्त होने से
अमुक काल पर्यन्त होने से ।
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- २६
॥