Book Title: Panchsangraha Part 07
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 330
________________ संक्रम आदि करणत्रय-प्ररूपणा अधिकार : परिशिष्ट : १ २६१ घाईणं जे खवगो जहण्णरससंकमस्स ते सामी । आऊण जहण्णठिइ-बंधाओ आवली सेसा ॥६२।। अणतित्थुव्वलगाणं संभवओ आवलिए परएणं । सेसाणं इगिसुहुमो घाइयअणुभागकम्मसो ॥६३।। साइयवज्जो अजहण्णसंकमो पढमदुइयचरिमाणं । मोहस्स चउविगप्पो आउसणुक्कोसओ चउहा ॥६४।। साइयवज्जो वेयणियनामगोयाण होइ अणुक्कोसो । सव्वेसु सेसभेया साई अधुवा य अणुभागे ।।६।। अजहण्णो चउभेओ पढमगसंजलणनोकसायाणं । साइयवज्जो सो च्चिय जाणं खवगो खविय मोहो ॥६६।। सुभधुवचउवीसाए होइ अणुक्कोस साइपरिवज्जो। उज्जोयरिसभओरालियाण चउहा दुहा सेसा ॥६७।। विज्झा-उव्वलण-अहापवत्त-गुण-सव्वसंकमेहि अणू । जं नेइ अण्णपगई पएससंकामणं एयं ॥६८।। जाण न बंधो जायइ आसज्ज गुणं भवं व पगईणं । विज्झाओ ताणंगुलअसंखभागेण अण्णत्थ ॥६६।। पलियस्ससंखभागं अंतमुहुत्तेण तीए उव्वलइ। एवं पलियासंखियभागेणं कुणइ निल्लेवं ॥७०।। पढमाओ बीअखंडं विसेसहीणं ठिइए अवणइ ।। एवं जाव दुचरिमं असंखगुणियं तु अंतिमयं ॥७१।। खंडदलं सट्ठाणे समए समए असंखगुणणाए। सेढीए परट्ठाणे विसेसहीणाए संछुभइ ॥७२॥ दुचरिमखंडस्स दलं चरिमे जं देइ सपरट्ठाणंमि । तम्माणेणस्स दलं पल्लंगुलसंखभागेहिं ॥७३॥ . एवं उव्वलणासंकमेण नासेइ अविरओ आहारं । सम्मोऽणमिच्छमीसे छत्तीस नियट्टी जा माया ॥४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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