Book Title: Panchsangraha Part 07
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : ७
ठिई जहन्नया आवलीदुगेणूणा । जोगतीणं पलियासंखंस इराणं ||४|| मूलठिईण अजहन्नो सत्तण्ह तिहा चतुव्विहो मोहे | सेसविगप्पा साई अधुवा ठितिसंकमे होंति ॥ ५० ॥ तिविहो ध्रुवसंताणं चउव्विहो तह चरित्तमोहीणं । अजहन्नो सेसासु दुविहो सेसा वि दुविगप्पा ||२१|| ठितिसंकमोव्व तिविहो रसम्मि उव्वट्टणाइ विन्नेओ । रसकारणओ नेयं घाइत्तविसेसणभिहाणं || ५२ ||
पु संजलणाण अंतो
देसघाइरसेणं,
इयरेणियरा एमेव, ठाणसन्ना वि
पगईओ होंति देसघाईओ ।
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नेयव्वा ||५३ ||
सव्वग्घाइ दुठाणो
मीसायवमणुयतिरियआऊणं । इगट्टाणो सम्मंमि तदियरोण्णासु जह हेट्ठा ||१४|| दुट्ठाणो च्चिय जाणं ताणं उक्कोसओ वि सो चेव । संकमइ वेयगे वि हु सेसासुक्कोसओ परमो || ५५|| एकट्ठाणजहन्नंं संकमइ पुरिससम्मसंजलणे | इयरासु दोट्ठाणि य जहण्णरससंकमे फड्ड ||५६ || बंधिय उक्कोसरसं आवलियाओ परेण संकामे । जावतमुहू मिच्छो असुभाणं सव्वपयडीणं ||२७|| आयावुज्जोवोराल पढमसंघयण मणदुगाउणं । मिच्छा सम्मा य सामी सेसाणं जोगि सुभियाणं ॥ ५८ ॥ खवगस्संतरकरणे अकए घाईण जो उ अणुभागो । तस्स अणतो भागो सुमेगिदिय कए थोवो ||५|| सेसाणं असुभाणं केवलिणो जो उ होई अणुभागो । तस्स अणंतो भागो असणिपंचेंदिए होइ ||६०|| सम्मद्दिट्ठी न हणइ सुभाणुभागं दु चेव दिट्ठीणं । सम्मत्तमी सगाणं उक्कोसं हणइ खवगो
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उ ।। ६१ ।।
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