Book Title: Panchsangraha Part 07
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : ७ __ अब शेष रहे पतद्ग्रहस्थानों और संक्रमस्थानों के सादि आदि भंगों को स्पष्ट करते हैं
मिश्रगुणस्थान से लेकर अपूर्वकरणगुणस्थान के संख्यात भाग पर्यन्त दर्शनावरणकर्म की नौ प्रकृतियों की सत्ता वाला और छह का बंधक छह में नौ संक्रमित करता है। यह छह का पतद्ग्रह सादि, सांत है । क्योंकि कदाचित्क-अमुककाल ही प्रवर्तित होता है। - अपूर्वकरण के संख्यातवें भाग में निद्रा और प्रचला का बंधविच्छेद होने के बाद से लेकर सूक्ष्मसंपरायगुणस्थान के चरम समय पर्यन्त उपशमश्रोणि में नौ की सत्ता वाला और चार का बंधक चार में नौ प्रकृतियों को संक्रमित करता है । यह चार प्रकृतिक पतद्ग्रह भी अन्तमुहूर्त पर्यन्त ही होने से सा दि, अध्र व है।
क्षपकौणि में अनिवृत्तिबादरसंपरायगुणस्थान का संख्यातवां भाग शेष रहे तब स्त्याद्धित्रिक का सत्ता में से क्षय होता है। उसका क्षय होने के बाद से लेकर सूक्ष्मसंपरायगुणस्थान के चरम समय पर्यन्त दर्शनावरण की छह प्रकृतियों की सत्ता वाला और चार का बंधक चार में छह प्रकृतियों को संक्रमित करता है। यह संक्रम और पतद्ग्रह अन्तमुहूर्त पर्यन्त ही प्रवर्तित होने से सादि, अध्र व-सांत है।
इस प्रकार से दर्शनावरणकर्म के नौ प्रकृति रूप संक्रम और पतद्ग्रह स्थानों की सादि आदि रूप चतुभंगता और शेष स्थानों की द्विभंगता जानना चाहिये और इस में कारण उनका परिमित काल पर्यन्त होना है। ___ सुगमता से जानने के लिये साद्यादि भंगों की प्ररूपणा बोधक प्रारूप परिशिष्ट में देखिये । दर्शनावरणकर्म के संक्रम और पतद्ग्रह स्थानों को जानने की विधि :
नवछक्कचउक्केसुनवगं संकमइ उवसमगयाणं । खवगाण चउसु छक्कं दुइए मोहं अओ वोच्छं ॥१५॥
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