Book Title: Panchsangraha Part 07
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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प्रदेशसंक्रम की साद्यादि भंग प्ररूपणा अजघन्य
जघन्य
अनुत्कृष्ट
__ उत्कृष्ट प्रकृतियां
सादि अध्रुव अनादि ध्रुव सादि अध्रुव सादि अध्रुव | अनादि ध्रुव सादि अध्रुव अनन्तरोक्त ) उपशम भव्य | साद्या- अभव्य क्षपणोद्यत सादि उपशम | भव्य सादि अभव्य क्षपणोद्यत सादि २१ रहित
प्राप्त
क्षपित होने से श्रेणि से| अप्राप्त गुणित होने से १०५ ध्र व पतित
कर्माश पतित
कर्मांश सत्ताका ज्ञाना ५.
___" " " " " " गुणित | सादि X X गणित दर्शना. ४
कर्माश होने से
कर्माश अंतराय ५
मिथ्या.
मिथ्या. औदारिक
कदाचित्
कदाचित् सप्तक(२१)
होने से
होने से
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X
X
शेष २८ अध्र व सत्ताका
अध्र व अध्र- सत्तावाली व. होने होने से से |
X | अध्र व. अध्र व | अध्र व अध्र व होने से होने से सत्ता सत्ता |
| होने से होने से
X अध्र व अध्र व
सत्ता सत्ता
मिथ्यात्व
x
X
पतद्ग्रहा पतद्-x ध्रुव होने ग्रहाध्र
व होने
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पतद्ग्रहा पतद्- पतद्ग्रहा पतद्- ध्रव होने ग्रहा ध्र व होने ग्रहा | से ध्रुव । से ध्रुव । होने से
होने से परावर्त पराव- परावर्त. परा- माना होने होने से | वर्त.
X पतद्ग्रहा पतद्ध्रव होने ग्रहा
ध्रुव
होने से परावर्त. परावहोने से तमाना
x
x
X
X
नीचगोत्र, । परावर्त परावर्त साता-असाता माना माना नेटती । टोले गेटो गे
पंचसंग्रह : ५