Book Title: Panchsangraha Part 07
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : ७
विशेषार्थ-जघन्य योग द्वारा बांधी गई आयु की सत्ता में जब समयाधिक एक आवलिका शेष रहे तब उनका जघन्य प्रदेशसंक्रम होता है। आयुकर्म में यह संक्रम स्वस्थान में ही जानना चाहिये। क्योंकि आयु कर्म में अन्य प्रकृति नयनसंक्रम नहीं होता है । जिससे उदयावलिका से ऊपर के समय का दलिक अपवर्तना द्वारा नीचे उतारने रूप अपवर्तनासंक्रम समझना चाहिये किन्तु अन्य प्रकृति नयनसंक्रम नहीं। __ उत्कृष्ट तीन पल्य की आयु वाले मनुष्य और तिर्यंच अपनी आयु के अंत में औदारिक सप्तक का जघन्य प्रदेशसंक्रम करते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि कोई एक जीव जो अन्य समस्त जीवों की अपेक्षा सर्व जघन्य औदारिक सप्तक की प्रदेश सत्ता वाला हो और तीन पल्योपम की आयु वाले युगलिक तिर्यंच या मनुष्य में उत्पन्न हो तो वह युगलिक औदारिक सप्तक को उदय-उदीरणा द्वारा अनुभव करते और विध्यातसंक्रम द्वारा पर-प्रकृति में संक्रमित करते अपनी आयु के चरम समय में औदारिकसप्तक का जघन्य प्रदेशसंक्रम करता है। इसका कारण यह है कि अन्य जीवों की अपेक्षा वह अल्प सत्ता वाला है और तीन पल्योपम तक उदय-उदीरणा द्वारा भोगकर एवं विध्यातसंक्रम द्वारा अन्य में संक्रमित करके अल्प करता है, जिससे अल्प प्रदेश की सत्ता वाला वह औदारिकसप्तक का जघन्य प्रदेश संक्रम कर सकता है। पुरुषवेद संज्वलनत्रिक का जघन्य प्रदेशसंक्रम स्वामित्व
पुसंजलणतिगाणं जहण्णजोगिस्स खवगसेढीए।
सगचरिमसमयबद्ध जं छुमइ सगंतिमे समए ।।११९।। शब्दार्थ-पुसंजलणतिगाणं-पुरुषवेद, संज्वलनत्रिक का, जहण्णजोगिस्स-जघन्य योग वाले के, खवगसेढीए---क्षपक श्रेणि में वर्तमान, सगरिमसमयबद्ध-अपने चरम समय में बद्ध, जं-जो, छुमइ-संक्रमित करता है, सगंतिमे-अपने अंतिम, समए-समय में ।
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