Book Title: Panchsangraha Part 07
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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संक्रम आदि करणत्रय - प्ररूपणा अधिकार : गाथा १८, १६
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जघन्य निक्षेप सबसे अल्प है । क्योंकि वह आवलिका का समयाधिक एक तृतीयांश भाग है। उससे जघन्य अतीत्थापना अनन्त गुण है । अनन्तगुणता का कारण यह है कि वह समयन्यून आवलिका के दो तृतीयांश भाग प्रमाण है । उससे व्याघात में अतीत्थापना अनन्तगुण हैं। क्योंकि वह समयन्यून कंडक प्रमाण है और व्याघात में कंडक का प्रमाण पहले कहा जा चुका है। उससे उत्कृष्ट अनुभाग कंडक विशेषाधिक है । क्योंकि वह अतीत्थापना से एक समय गत स्पर्धक द्वारा अधिक है और उससे उत्कृष्ट निक्षेप विशेषाधिक है । उससे सर्व अनुभाग विशेषाधिक है ।
इस प्रकार से अनुभाग - अपवर्तना विषयक अल्पबहुत्व जानना चाहिये | अब उद्वर्तना - अपवर्तना के संयुक्त अल्पबहुत्व का कथन करते हैं
थो सगुणहाणि अंतरे दुसु वि हीणनिक्खेवो ।
तुल्लो अनंतगुणिओ दुसु वि अइत्थावणा चेव ॥ १८ ॥ तत्तो वाघायणुभागकंडगं एक्कवग्गणाहीणं । उक्कोसो निवखेवो तुल्लो सविसेस संतं च ॥१६॥
शब्दार्थ –थोवं स्तोक - अल्प, पएसगुणहाणि अंतरे- प्रदेश की गुण वृद्धि या हानि के अंतर में, दुसु वि-दोनों मे ही, हीणनिक्खेवो जघन्य निक्षेप, तुल्लो— तुल्य, अनंतगुणिओ-अनन्तगुण, दुसु वि-दोनों में, अइत्थावणा-अतीत्थापना, चेव — और इसी प्रकार ।
तत्तो—उससे, वाघायणुभागकंडगं - व्याघात में अनुभागकंडक, एक्कवग्गणा होणं - एक वर्गणाहीन, उक्कोसो—उत्कृष्ट, निक्खवो— निक्षेप, तुल्लो— तुल्य, सविसेस - विशेषाधिक, संतं - सत्ता, च- और ।
गाथार्थ - प्रदेश की गुण वृद्धि या हानि के अंतर में रहे हुए स्पर्धक अल्प हैं। उनसे दोनों में— उद्वर्तना - अपवर्तना में जघन्य निक्षेप अनन्तगुण है और परस्पर तुल्य है। उससे दोनों में अतीत्थापना अनन्तगुण है और परस्पर तुल्य है ।
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