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________________ संक्रम आदि करणत्रय - प्ररूपणा अधिकार : गाथा १८, १६ २८१ 1 जघन्य निक्षेप सबसे अल्प है । क्योंकि वह आवलिका का समयाधिक एक तृतीयांश भाग है। उससे जघन्य अतीत्थापना अनन्त गुण है । अनन्तगुणता का कारण यह है कि वह समयन्यून आवलिका के दो तृतीयांश भाग प्रमाण है । उससे व्याघात में अतीत्थापना अनन्तगुण हैं। क्योंकि वह समयन्यून कंडक प्रमाण है और व्याघात में कंडक का प्रमाण पहले कहा जा चुका है। उससे उत्कृष्ट अनुभाग कंडक विशेषाधिक है । क्योंकि वह अतीत्थापना से एक समय गत स्पर्धक द्वारा अधिक है और उससे उत्कृष्ट निक्षेप विशेषाधिक है । उससे सर्व अनुभाग विशेषाधिक है । इस प्रकार से अनुभाग - अपवर्तना विषयक अल्पबहुत्व जानना चाहिये | अब उद्वर्तना - अपवर्तना के संयुक्त अल्पबहुत्व का कथन करते हैं थो सगुणहाणि अंतरे दुसु वि हीणनिक्खेवो । तुल्लो अनंतगुणिओ दुसु वि अइत्थावणा चेव ॥ १८ ॥ तत्तो वाघायणुभागकंडगं एक्कवग्गणाहीणं । उक्कोसो निवखेवो तुल्लो सविसेस संतं च ॥१६॥ शब्दार्थ –थोवं स्तोक - अल्प, पएसगुणहाणि अंतरे- प्रदेश की गुण वृद्धि या हानि के अंतर में, दुसु वि-दोनों मे ही, हीणनिक्खेवो जघन्य निक्षेप, तुल्लो— तुल्य, अनंतगुणिओ-अनन्तगुण, दुसु वि-दोनों में, अइत्थावणा-अतीत्थापना, चेव — और इसी प्रकार । तत्तो—उससे, वाघायणुभागकंडगं - व्याघात में अनुभागकंडक, एक्कवग्गणा होणं - एक वर्गणाहीन, उक्कोसो—उत्कृष्ट, निक्खवो— निक्षेप, तुल्लो— तुल्य, सविसेस - विशेषाधिक, संतं - सत्ता, च- और । गाथार्थ - प्रदेश की गुण वृद्धि या हानि के अंतर में रहे हुए स्पर्धक अल्प हैं। उनसे दोनों में— उद्वर्तना - अपवर्तना में जघन्य निक्षेप अनन्तगुण है और परस्पर तुल्य है। उससे दोनों में अतीत्थापना अनन्तगुण है और परस्पर तुल्य है । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001904
Book TitlePanchsangraha Part 07
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages398
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size18 MB
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