Book Title: Panchsangraha Part 07
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : ७ प्रदेश में वृद्धि-हानि नहीं होती है, परन्तु स्थिति और रस में होती है। इसलिये क्रम प्राप्त पहले स्थिति-रस की उद्वर्तना की प्ररूपणा करके, बाद में स्थिति-रस की अपवर्तना का निरूपण करेंगे।
उद्वर्तना के विचार में स्थिति का प्रथम स्थान है, अतएव स्थिति उद्वर्तना का कथन करते हैं कि उदयावलिका को छोड़कर ऊपर जो स्थितियां हैं, उनमें स्थिति-उद्वर्तना प्रवर्तित होती है और उदयावलिका सकल करण के अयोग्य होने से उसमें प्रवृत्त नहीं होती है।
प्रश्न-बंधावलिका के बीतने के बाद उदयावलिका से ऊपर की समस्त स्थिति की-समस्त स्थितिस्थानों की उद्वर्तना हो सकती है ?
उत्तर-बंधावलिका से ऊपर की समस्त स्थिति की-समस्त स्थितिस्थानों की उद्वर्तना नहीं हो सकती है ।
प्रश्न-तब कितने की हो सकती है ?
उत्तर-स्वजातीय जिस प्रकृति की जितनी स्थिति बंधती है, उसकी जितनी अबाधा हो तो उस प्रकृति की सत्ता में रही हुई उतनी स्थिति की उद्वर्तना नहीं हो सकती है, परन्तु अबाधा से ऊपर की स्थिति की उद्वर्तना होती है। अर्थात् उत्कृष्ट अबाधा हो तब अबाधाप्रमाण सत्तागत स्थिति की, मध्यम हो तब मध्यम अबाधाप्रमाण स्थिति की और जघन्य अबाधा हो तब जघन्य अबाधाप्रमाण सत्तागत स्थिति की उद्वर्तना नहीं होती है, परन्तु उससे ऊपर की स्थिति की हो सकती है।
इस प्रकार उत्कृष्ट अबाधाप्रमाण स्थिति उत्कृष्ट अतीत्थापना, मध्यम अबाधाप्रमाण स्थिति मध्यम अतीत्थापना और अल्प-अल्प होती जघन्य अबाधाप्रमाण स्थिति जघन्य अतीत्थापना है ।
अतीत्थापना का अर्थ है उलांघना । इसीलिये जितनी स्थिति को उलांघकर उद्वर्तना हो, वह उलांघने योग्य स्थिति अतीत्थापनास्थिति
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