Book Title: Panchsangraha Part 07
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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संक्रम आदि करणत्रय-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ६७
२११ इस प्रकार से वेदत्रिक के उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम के स्वामियों को जानना चाहिये। अब संज्वलनत्रिक-क्रोध, मान, माया के उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम के स्वामियों को बतलाते हैं। संज्वलनत्रिक : उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रमस्वामित्व
तस्सेव सगे कोहस्स मागमायाणवि कसिणो ॥१७॥ शब्दार्थ-तस्सेव-उसी को, सगे-अपना, कोहस्स-क्रोध काः माणमायाणमवि-मान और माया का भी, कसिणो-कृत्स्न-चरम ।
गाथार्थ-उसी को अपना कृत्स्न चरम संक्रम होने पर क्रोध का उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम होता है तथा इसी प्रकार मान और माया का भी उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम जानना चाहिये। विशेषार्थ-पुरुषवेद के उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम का जिस प्रकार से और जो स्वामी है उसी प्रकार से ही वही संज्वलन क्रोध, मान और माया के उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम का भी स्वामी है। ___इस संसार में परिभ्रमण करते हुए बांधी गई और क्षपणकाल में नहीं बंधने वाली स्वजातीय अशुभ प्रकृतियों का गुणसंक्रम द्वारा प्रभूत मात्र में एकत्रित हुए के संज्वलन क्रोध का जब चरम प्रक्षेप होता है, तब उसका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम होता है। यहाँ भी बंधविच्छेद होने से पहले दो आवलिका काल में जो दलिक बांधे थे, उनको छोड़कर शेष दलिकों के चरम प्रक्षेप के समय उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम जानना चाहिये।
संज्वलन मान एवं माया के सम्बन्ध में भी इसी प्रकार समझना चाहिये।
होने से उसे उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम के रूप में नहीं गिना जा सकता है। क्रोध, मान, माया का भी इसी तरह उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम सम्भव हो सकता है । विशेष केवलीगम्य है । विद्वज्जन स्पष्ट करने की कृपा
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