Book Title: Panchsangraha Part 07
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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संक्रम आदि करणत्रय-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ६८
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मोहनीय का पूर्ण उपशम होता है, पांचवी बार नहीं होता है, इसीलिये चार बार मोहनीय को उपशमित करके यह कहा है। __ संज्वलन लोभ का चरम प्रक्षेप कहाँ होता है ? तो इसका उत्तर यह है कि संज्वलन लोभ का चरमप्रक्षेप अन्तरकरण के चरमसमय में जानना चाहिये उसके बाद नहीं। क्योंकि उसके बाद लोभ का प्रक्षेप-संक्रम ही नहीं होता है। इस विषय में पहले कहा जा चुका है---
अंतरकरणं मि कए चरित्तमोहेणुपुव्विसंकमणं । अन्तरकरण क्रिया काल प्रारम्भ हो तब चारित्रमोहनीय की उस समय बंधने वाली प्रकृतियों का क्रमपूर्वक संक्रम होता है, उत्क्रम से संक्रम नहीं होता है । जिससे अन्तरकरण क्रिया शुरू होने के बाद तो संज्वलन लोभ का संक्रम ही नहीं होता है । अतः जिस समय से लोभ का संक्रम बंद हुआ, उससे पहले के समय में बंध और अन्य प्रकृतियों के संक्रम द्वारा पुष्ट हुए उसका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम होता है ।
इसी प्रकार अपूर्वकरणगुणस्थान में जिस समय नामकर्म की तीस प्रकृतियों का अंतिम बंध होता है, उस समय बंध द्वारा और स्वजातीय अवध्यमान अन्य प्रकृतियों के संक्रम द्वारा पुष्ट हुई यश:कीर्ति प्रकृति का उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम होता है। तीस प्रकृतियों का बंधविच्छेद होने के बाद वह अकेली यशःकीर्ति प्रकृति ही बंधने से वही पतद्ग्रह है, अन्य कोई पतद्ग्रहप्रकृति नहीं है, जिससे यशःकीर्ति का संक्रम नहीं होता है। यही स्पष्ट करने के लिये तीस का बंधविच्छेद समय ग्रहण किया है। ___ अब उच्चगोत्र का उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम कहाँ होता है ? इसको स्पष्ट करते हैं
मोह का उपशम करते हुए मात्र उच्चगोत्रकर्म ही बंधता है, नीचगोत्र नहीं बंधता है। इतना ही नहीं, किन्तु नीचगोत्र के दलिक गुणसंक्रम द्वारा उच्चगोत्र में संक्रमित होते हैं। इसीलिये यहाँ भी
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