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________________ 38 Jain Education International प्रदेशसंक्रम की साद्यादि भंग प्ररूपणा अजघन्य जघन्य अनुत्कृष्ट __ उत्कृष्ट प्रकृतियां सादि अध्रुव अनादि ध्रुव सादि अध्रुव सादि अध्रुव | अनादि ध्रुव सादि अध्रुव अनन्तरोक्त ) उपशम भव्य | साद्या- अभव्य क्षपणोद्यत सादि उपशम | भव्य सादि अभव्य क्षपणोद्यत सादि २१ रहित प्राप्त क्षपित होने से श्रेणि से| अप्राप्त गुणित होने से १०५ ध्र व पतित कर्माश पतित कर्मांश सत्ताका ज्ञाना ५. ___" " " " " " गुणित | सादि X X गणित दर्शना. ४ कर्माश होने से कर्माश अंतराय ५ मिथ्या. मिथ्या. औदारिक कदाचित् कदाचित् सप्तक(२१) होने से होने से For Private & Personal Use Only X X शेष २८ अध्र व सत्ताका अध्र व अध्र- सत्तावाली व. होने होने से से | X | अध्र व. अध्र व | अध्र व अध्र व होने से होने से सत्ता सत्ता | | होने से होने से X अध्र व अध्र व सत्ता सत्ता मिथ्यात्व x X पतद्ग्रहा पतद्-x ध्रुव होने ग्रहाध्र व होने www.jainelibrary.org पतद्ग्रहा पतद्- पतद्ग्रहा पतद्- ध्रव होने ग्रहा ध्र व होने ग्रहा | से ध्रुव । से ध्रुव । होने से होने से परावर्त पराव- परावर्त. परा- माना होने होने से | वर्त. X पतद्ग्रहा पतद्ध्रव होने ग्रहा ध्रुव होने से परावर्त. परावहोने से तमाना x x X X नीचगोत्र, । परावर्त परावर्त साता-असाता माना माना नेटती । टोले गेटो गे पंचसंग्रह : ५
SR No.001904
Book TitlePanchsangraha Part 07
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages398
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size18 MB
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