Book Title: Panchsangraha Part 07
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : ७
जानना चाहिये । किन्तु सम्यक्त्व और मिश्रमोहनीयं का बंध नहीं होने से उनकी स्थान आदि संज्ञा नहीं बताई है । अतः अब उनके तथा कतिपय प्रकृतियों के विषय में संक्रम की अपेक्षा कुछ विशेष स्पष्टीकरण करते हैं-
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सव्वग्धाइ दुठाणो मीसायवमणुयतिरियआऊणं । इगट्ठा को सम्मंमि तदियरोण्णासु जह हेट्ठा ॥५४॥
शब्दार्थ - - सव्वग्घाइ - सर्वघाति, दुठाणो— द्विस्थानक, मीसायवमणुयतिरियआऊणं - मिश्र मोहनीय, आतप और मनुष्य, तिर्यंच आयु का, इगदुट्टाणीएकस्थानक, द्विस्थानक, सम्ममि - सम्यक्त्वमोहनीय में, तदयिरो - उससे इतर ( देशघाति), अण्णासु - अन्य प्रकृतियों में, जह— — — जैसा, हेट्ठा पूर्व में ।
गाथार्थ - मिश्रमोहनीय, आतप और मनुष्य तिर्यंच आयु का संक्रम की अपेक्षा रस सर्वघाति और द्विस्थानक होता है। सम्यक्त्वमोहनीय का संक्रम की अपेक्षा रस एकस्थानक, द्विस्थानक और देशघाति होता है तथा अन्य प्रकतियों में जैसा पूर्व में कहा है, उसी प्रकार संक्रम की अपेक्षा जानना चाहिये ।
विशेषार्थ - अनुभाग — रससंक्रम अधिकार में कितना और कैसा रस संक्रमित होता है, इसका विचार करना अभीष्ट है । अतएव इस गाथा में किन प्रकृतियों का कितना और कैसा रस संक्रमित होता है, यह स्पष्ट करते हैं—
मिश्रमोहनीय, आतप और मनुष्य-तियंच आयु का रस द्विस्थानक और सर्वघाति संक्रमित होता है। उसमें से मिश्रमोहनीय का रस तो सर्वघाति और मध्यम द्विस्थानक ही होता है । इसीलिये उसका संक्रम की अपेक्षा सर्वघाति और मध्यम द्विस्थानक रस बतलाया है ।
आतप, मनुष्यायु और तिर्यंचायु का यद्यपि द्वि, त्रि और चतु:स्थानक रस होता है । क्योंकि इनका वैसा रस बंधता है, किन्तु तथा
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