Book Title: Panchsangraha Part 07
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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संक्रम आदि करण त्रय-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ५८
करता है । इसलिये इन चौपन प्रकृतियों के उत्कृष्ट रससंक्रम के स्वामी सयोगिकेवली जीव जानना चाहिये तथा गाथोक्त 'च' शब्द से उन-उन प्रकृतियों का बंधविच्छेद होने के बाद जिस-जिस गुणस्थान में वर्तता हो, उस-उस गुणस्थानवी जीव भी समझना चाहिये । जैसे कि सातावेदनीय, यश:कीर्ति और उच्चगोत्र के उत्कृष्ट रस को बारहवें गुणस्थानवी जीव और शेष प्रकृतियों के उत्कृष्ट रस को नौवें, दसवें और बारहवें गुणस्थानवी जीव भी संक्रम करने वाले जानना चाहिये।
इस प्रकार से उत्कृष्ट अनुभागसंक्रम के स्वामियों का वर्णन जानना चाहिये । तद्दर्शक प्रारूप इस प्रकार है
उत्कृष्ट अनुभागसंक्रम-स्वामी
प्रकृतियां
स्वामी
उत्कृष्ट संक्रम सततकाल
नरकायुर हित शेष ८८ अशुभ प्रकृतियां
यूगलिक आन- | अन्तर्मुहर्त पर्यन्त तादि कल्पवासी देवों को छोड़कर सभी मिथ्यादृष्टि जीव
आतप, उद्योत, मनष्यद्विक औदारिकसप्तक, वज्रऋषभनाराच संहनन आयुचतुष्क
सम्यग्दृष्टि अथवा, १३२ सागरोपम पर्यन्त मिथ्यादृष्टि सभी जीव
उत्कृष्ट अनभाग | समयाधिक आवलिका बंधक सम्यग्दृष्टि, शेष पर्यन्त मिथ्यादृष्टि क्षपक स्वस्वक्षय |
| क्षयकाल से लेकर काल में
सयोगि पर्यन्त
पूर्वोक्त से शेष ५४ प्रकृति
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