Book Title: Panchsangraha Part 07
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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संक्रम आदि करणत्रय - प्ररूपणा अधिकार : गाथा ७६
उवलना संक्रमयोग्य प्रकृतियों का स्वामित्व और काल
प्रकृति
मिथ्यादृष्टियों की २३ व आहारकसप्तक
द्विक
सम्यक्त्व
देवद्विक वैक्रिय सप्तक नरकद्विक युगपत्
मिश्र २८ की सत्ता वाले मिथ्यादृष्टि, २८ या २७ की सत्ता वाले आहारक, तीर्थंकर नाम रहित ६५ नामकर्म की सत्ता वाले एकेन्द्रिय
उच्चगोत्र, मनुष्य - अग्निकायिक, वायुकायिक
उवलन स्वामित्व
४२, स्थाव. सूक्ष्म, तिर्यंचद्विक, नरकद्विक, आतप उद्योत, एकेन्द्रिय विकलेन्द्रियत्रिक साधा
अविरत
रण
मध्य आठ कषाय, नव नोकषाय, संज्व. क्रोध,
मान, माया
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मिथ्यात्व, मिश्र ४, ५, ६, ७, गुणस्थान अनन्तानुबंधिचतुष्क
वर्ती
सम्यग्दृष्टि की नौवें गुणस्थानवर्ती अन्तर्मुहूर्त
स्त्यानद्धित्रिक क्षपक
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उवलनकाल
पल्यासंख्येय भाग
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