Book Title: Panchsangraha Part 07
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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जघन्य
jeogeudaereuler
प्रकृतियां
उत्तरप्रकृतियों सम्बन्धी अनुभागसंक्रम की साद्यादि प्ररूपणा अजघन्य
अनुस्कृष्ट
उत्कृष्ट सादि अध्रुव अनादि ध्रुव सादि अध्रुव | सादि अध्रुव अनादि | ध्रुव | सादि अध्रुव उपशम भव्य सादि अभ- स्व-स्व सादि उत्कृष्ट सादि x x उत्कृष्ट सादि अप्राप्त व्य क्षयकाल होने अन. होने
संक्लिष्ट होने पतित
से संक्रम से
मिथ्या- से से पतित
नव नोकषाय, संज्व. चतुष्क
में
त्वी ।
अनन्तानुबंधिचतुष्क
"
"
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पुनबंधद्वि , "3 वाह
तीयआव के प्रथम
समय , १२वें गुण ,
समयाधि
X
,
"
"
X
X
"
"
ज्ञाना. ५, दर्शना. ६, अंतराय ५
आदि का अभाव होने से
आव.
शेष
X
होने
साता. पंचे, तैजस अहत
समच. शुभ प्रभूत वर्णादि ११, अगुरु. अनु. उच्छ्वास सत्ता
वाले पराघात, शूभ । ..
XX हतप्रभूत
अनुभाग सत्ताक सूक्ष्म
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भव्य क्षपक अभ- स्व-स्वक्ष
सयोगि. । व्य पक काल वर्ज शेष सेसयोगि
गुणस्थान
पर्यन्त । .. .. . वर्तमान
एके.
"
X