Book Title: Panchsangraha Part 07
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : ७
विध्यातसंक्रम-प्रारूप
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प्रकृतियां
स्वामित्व
प्रत्यय
मिथ्यात्व, नरकायुवजित सासादनादिक गुणस्थान | गुणप्रत्यय से मिथ्यात्वगुण. में अंत होने वाली (१४) तिर्यंचायुवर्तिजसासादन मिश्रादिक में अंत होने वाली (२४) मिथ्यात्व, मिश्रमो. अविरतादिक मनुष्यायुरहित चतुर्थ | देशविरतादिक गुण. में अंत होने वाली(८) पंचम गुणस्थान में अंत । प्रमत्तसंयतादिक होने वाली (४) प्रमत्तसंयतगुण. में अंत । अप्रमत्तादिक होने वाली (६) वक्रिय ७. देवद्विक, नरक- सभी नारक, सनत्कुमारा- भवप्रत्यय से द्विक, एके. जाति ४ दिक देव स्थावर, सूक्ष्म, साधा. अपर्याप्त, आतप (२०) नरकद्विक, देवद्विक, ईशान पर्यन्त के देव वैक्रिय ७. विकलत्रिक, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधा. तिर्यंचद्विक, उद्योत, पूर्वो- आनतादिक के देव क्त (२०) संह. ६, कुसंस्थान ५, नपु युगलिक तिर्यंच, मनुष्य मन, द्विक, औदा. ७. तिर्यंचप्रायोग्य १०. अप. नरकद्विक, दुर्भगत्रिक, नीचगोत्र, अशुभ विहायोगति (३६)
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