Book Title: Panchsangraha Part 07
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : ७
इस प्रकार अनुभागसंक्रम का विचार समाप्त हुआ ।
प्रदेशसंक्रम
अब क्रमप्राप्त प्रदेशसंक्रम का प्रतिपादन करते हैं । इसके विचार करने के पोंच अधिकार हैं- १. भेद, २. लक्षण, ३. साद्यादि प्ररूपणा, ४. उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रमस्वामी और ५. जघन्य प्रदेशसंक्रमस्वामी । इन पांच अधिकारों में से पहले भेद और लक्षण इन दो अधिकारों का प्रतिपादन करते हैं ।
प्रदेशसंक्रम के भेद एवं लक्षण
विज्झा - उव्वलण - अहापवत्त-गुण-सव्वसंकमेहि अणू । जं नेड अण्णपगई पएस कामणं एयं ॥ ६८ ॥ शब्दार्थ - विज्झा - उव्वलण - अहापवत्त-गुण- सव्वसंकमेहि-विध्यात, उवलन, यथाप्रवृत्त, गुण और सर्व संक्रम द्वारा, अणू--- परमाणुओं को, जं—जो, नेइ - ले जाया जाता है, अण्णपगई-- अन्यप्रकृतिरूप, पएससंकामणं - प्रदेशसंक्रमण, एवं - वह |
गाथार्थ - विध्यात - उद्वलन - यथाप्रवृत्त - गुण और सर्व संक्रम द्वारा कर्मपरमाणुओं को जो अन्यप्रकृति रूप ले जाया जाता है, वह प्रदेशसंक्रम कहलाता है ।
विशेषार्थ - विध्यातसंक्रम, उद्वलनासंक्रम, यथाप्रवृत्तसंक्रम, गुणसंक्रम और सर्वसंक्रम के भेद से प्रदेशसंक्रम पांच प्रकार का है ।
इन पांच संक्रम प्रकारों द्वारा जिनकी बंधावलिका व्यतीत हो चुकी है, ऐसे सत्तागत कर्मपरमाणुओं- वर्गणाओं को पतग्रहप्रकृति में प्रक्षेप करके उस रूप करना प्रदेशसंक्रम कहलाता है । इन पांचों संक्रम द्वारा जीव अन्य स्वरूप में रहे हुए सत्तागत कर्मपरमाणुओं को पतद्ग्रहप्रकृति रूप करता है । जैसे कि सातावेदनीय के परमाणुओं को
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