Book Title: Panchsangraha Part 07
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : ७
अब जघन्य अनुभागसंक्रम के स्वामियों का निर्देश करते हैं। जघन्य अनुभागसंक्रम किसको हो सकता है ? इसका परिज्ञान कराने के लिये गाथासूत्र कहते हैं । जघन्य अनुभागसंक्रमस्वामित्व की सामान्य भूमिका
खवगस्संतरकरणे अकए घाईण जो उ अणुभागो।
तस्स अणंतो भागो सुहुमेगिदिय कए थोवो ॥५६॥ शब्दार्थ-खवगस्तांतरकरणे-क्षपक के अन्तरकरण, अकए-न किया हो, घाईण-घाति प्रकृतियों का, जो उ अणुभागो-जो भी अनुभाग, तस्सउसका, अणंतो भागो-अनन्त वां भाग, सुहुमेगिदिय-सूक्ष्म एकेन्द्रिय के, कए-करने के बाद, थोवो--स्तोक, अल्प ।
गाथार्थ-अन्तरकरण न किया हो, तब तक क्षपक के घातिप्रकृतियों का जो भी अनुभाग (सत्ता में) होता है, उसको अनन्तवां भाग सूक्ष्म एकेन्द्रिय के होता है और अन्तरकरण करने के बाद स्तोक, अल्प होता है।
विशेषार्थ-जहाँ तक अन्तरक रण नहीं होता है, वहाँ तक सर्वघाति अथवा देशघाति कर्मप्रकृतियों का जो अनुभाग क्षपक जीव के सत्ता में होता है, उसका अनन्तवां भाग सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीव के सत्ता में होता है । अर्थात् जब तक अन्तरकरण किया हुआ नहीं होता है, तब तक सूक्ष्म एकेन्द्रिय के सत्तागत अनुभाग से क्षपक के सर्वघाति या देशघाति प्रकृतियों का सत्तागत अनुभाग अनन्तगुणा होता है, परन्तु अन्तरकरण होने के बाद सूक्ष्म एकेन्द्रिय के सत्तागत अनुभाग से रसघात द्वारा बहुत-सा रस कम हो जाने से क्षपक के घातिकर्मप्रकृतियों का अनुभाग अत्यल्प होता है । तथा
सेसाणं असुभाणं केवलिणो जो उ होई अणुभागो। तस्स अणंतो भागो असण्णिपंचेंदिए होइ ॥६०॥
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