Book Title: Panchsangraha Part 07
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : ७
रखकर बाद में मिथ्यात्व में भी जाते हैं, जिससे मिथ्यादृष्टि भी उपर्युक्त प्रकृतियों के उत्कृष्ट रस को संक्रमित करते हैं। ___ आतप, उद्योत का उत्कृष्ट अनुभाग मिथ्यादृष्टि ही बांधते हैं । इसलिये बंधावलिका के व्यतीत होने के अनन्तर उन दोनों के उत्कृष्ट रस के संक्रम का तो उनको अभाव नहीं है और उत्कृष्ट रस सत्ता में होने पर भी मिथ्यात्व से सम्यक्त्व में जाने पर सम्यग्दृष्टि भी उन दो प्रकृतियों के उत्कृष्ट रस को संक्रमित करते हैं। क्योंकि शुभ प्रकृति होने से सम्यग्दृष्टि उन दोनों के उत्कृष्ट रस को कम नहीं करते हैं, परन्तु सुरक्षित रखते हैं, जिससे सम्यग्दृष्टि को भी उनके उत्कृष्ट रस के संक्रम में कोई विरोध नहीं है। ___ चार आयु के उत्कृष्ट रस को सम्यग्दृष्टि या मिथ्यादृष्टि बांधकर बंधावलिका के बीतने के बाद उस-उस आयु की समयाधिक आवलिका शेष रहे तब तक सम्यग् अथवा मिथ्या इस प्रकार दोनों दृष्टि वाले संक्रमित करते हैं। अर्थात् चार आयु के उत्कृष्ट रससंक्रम के स्वामी सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि दोनों हैं।
यद्यपि तीन आयु का उत्कृष्ट रसबंध मिथ्यादृष्टि और देवायु का अप्रमत्त जीव करता है। जिससे जहाँ-जहाँ बंध करे, वहाँ-वहाँ तो उत्कृष्ट रस का संक्रम घटित हो सकता है और उत्कृष्ट रस सत्ता में होने पर भी मिथ्यात्व से सम्यक्त्व में जाते सम्यग्दृष्टि के तीन आयु के उत्कृष्ट रस का और सम्यक्त्व से गिरकर मिथ्यात्व में जाते मिथ्यादृष्टि को देवायु के उत्कृष्ट रस का संक्रम घट सकता है । __ शेष सातावेदनीय, देवद्विक, पंचेन्द्रियजाति, वैक्रियसप्तक, आहारकसप्तक, तैजससप्तक, समचतुरस्रसंस्थान, शुभवर्णादि एकादश, प्रशस्त विहायोगति, उच्छ्वास, अगुरुलघु, पराघात, त्रसदशक, निर्माण, तीर्थकर और उच्चगोत्र रूप चौपन शुभ प्रकृतियों के उत्कृष्ट रस को अपने-अपने बंधविच्छेद के समय बांधकर बंधावलिका के बाद
सयोगिकेवली के चरम समय पर्यन्त उस उत्कृष्ट रस को संक्रमित Jain Education International
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