Book Title: Panchsangraha Part 07
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : ७
पतद्ग्रहस्थान में, दोसु – दो में, छडट्ठदुपंच- छह, आठ, दो और पांच प्रकृतिक, य-और, इगि― एक में, एक्कं एक, दोण्णि तिण्णि पण-दो तीन, पांच |
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गाथार्थ-तीन आदि तीन तथा सात, आठ, नौ और ग्यारह ये सात संक्रमस्थान तीन में संक्रमित होते हैं तथा दो में छह, आठ, दो और पांच ये चार संक्रमस्थान एवं एक में एक, दो, तीन और पांच प्रकृतिक ये चार संक्रमस्थान संक्रान्त होते हैं ।
विशेषार्थ - तीन आदि अर्थात् तीन, चार और पांच तथा सात, आठ, नौ एवं ग्यारह प्रकृतिक ये सात संक्रमस्थान तीन प्रकृति रूप पतद्ग्रहस्थान में संक्रमित होते हैं । उनमें क्षपकश्रेणि में पुरुषवेद का क्षय होने के बाद तीन प्रकृतियां तीन में संक्रमित हाती हैं तथा उपशम सम्यक्त्वी के उपशमश्रेणि में संज्वलन मान के उपशांत होने के बाद सात, अप्रत्याख्यानावरण- प्रत्याख्यानावरण माया के उपशमित होने पर पांच एवं संज्वलन माया का उपशम होने पर चार प्रकृतियां तीन में संक्रांत होती हैं । आठ, नौ और ग्यारह प्रकृतिरूप तीन संक्रमस्थान क्षायिक सम्यग्दृष्टि के उपशमश्रण में होते हैं । उनमें पुरुषवेद का उपशम होने के बाद ग्यारह प्रकृतियां, अप्रत्याख्यानावरण- प्रत्याख्यानावरण क्रोध के उपशांत होने के बाद नौ और संज्वलन क्रोध उपशमित होने पर आठ प्रकृतियां तीन प्रकृतिक पतद्ग्रह में संक्रमित होती हैं ।
दो प्रकृतिक पतग्रहस्थान में छह, आठ, दो और पांच प्रकृतिरूप चार संक्रमस्थान संक्रमित होते हैं । उनमें छह, आठ और पांच ये तीन संक्रमस्थान क्षायिक सम्यग्दृष्टि के उपशमश्रेणि में होते हैं । उनमें संज्वलन क्रोध के उपशमित होने के बाद मान पतद्ग्रह रूप नहीं रहता है, अतः आठ दो प्रकृतियों में संक्रान्त होती हैं । उनमें से अप्रत्याख्यानावरण-प्रत्याख्यानावरण मान का उपशम होने पर छह और संज्वलन मान का उपशम होने पर पांच प्रकृतियां दो में संक्रमित होती हैं तथा क्षपकश्रेणि में क्रोध का क्षय होने के बाद मान और माया ये दो
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