Book Title: Panchsangraha Part 07
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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• पणवीसो संसारिसु इगवीसे सत्तरे य संकमइ ।
तेरस चउदस छक्के वीसा छक्के य सत्ते य ॥२१॥
शब्दार्थ — पणवीसो-पच्चीस, संसारिसु संसारी जीवों में, इगवीसेइक्कीस में, सत्तरे —— सत्रह में, य-और, संकमइ - संक्रमित होती हैं, तेरस चउदस - तेरह और चौदह, छक्के - छह में, वीसा - बीस, छक्के छह में, य - और, सत्ते – सात में, य— और ।
पंचसंग्रह : ७
गाथार्थ - संसारी जीवों के इक्कीस और सत्रह में पच्चीस प्रकृतियां संक्रमित होती हैं । तेरह तथा चौदह छह में तथा बीस छह और सात में संक्रमित होती हैं ।
विशेषार्थ - मिथ्यादृष्टि, सासादन और सम्यग्मिथ्यादृष्टि रूप संसारी जीवों के इक्कीस और सत्रह प्रकृतिरूप पतद्ग्रहस्थानों में पच्चीस प्रकृतियां संक्रमित होती हैं । आशय इस प्रकार है- मिथ्यादृष्टि और सासादन गुणस्थान में इक्कीस में और सम्यग्मिथ्यादृष्टिगुणस्थान में सत्रह में पच्चीस प्रकृतियां संक्रमित होती हैं ।
उपशमश्रेणि में उपशम सम्यग्दृष्टि के अनुक्रम से हास्यषट्क और पुरुषवेद का उपशम होने के बाद चौदह और तेरह प्रकृतियां छह प्रकृतिक पतग्रहस्थान में संक्रमित होती हैं तथा पुरुषवेद पतद्ग्रह में से जब तक कम न हुआ हो तब तक सात प्रकृतिक पतद्ग्रहस्थान में बीस प्रकृतियां और उसके कम होने के बाद छह प्रकृतिक पतद्ग्रह में बीस प्रकृतियां संक्रमित होती हैं । तथा
बावीसे गुणवीसे पन्नर सेक्कारसेसु छवीसा |
iss सत्तaar मिच्छे तह अविरयाईणं ॥ २२ ॥
शब्दार्थ-बावीसे गुणवीसे-वाईस, उन्नीस पन्नरसेक्कारसेसु —— पन्द्रह और ग्यारह में, छब्बीसा --- छब्बीस, संकमइ — संक्रमित होती हैं, सत्तवीसासत्ताईस, मिच्छे मिथ्यात्व में, तह तथा अविरयाईणं - अविरत सम्यग्दृष्टि आदि के ।
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