Book Title: Panchsangraha Part 07
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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संक्रम आदि करणत्रय - प्ररूपणा अधिकार : गाथा २८
इस प्रकार अठारह आदि संक्रमस्थान पांच आदि पतद्ग्रहस्थान में क्षायिक सम्यग्दृष्टि के उपशमश्र णि में समझना चाहिये ।
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इतर - उपशमश्रेणि में उपशम सम्यग्दृष्टि के मिथ्यात्व और मिश्र मोहनीय ये दो प्रकृतियां दो प्रकृतियों—सम्यक्त्व और मिश्र मोहनीय में संक्रमित होती हैं तथा सात प्रकृतिक पतद्ग्रह में बीस, इक्कीस, बाईस और तेईस ये चार संक्रमस्थान संक्रांत होते हैं । उनमें अन्तरकरण करने के पहले अनन्तानुबंधिचतुष्क और सम्यक्त्वमोहनीय के सिवाय तेईस प्रकृतियां सात प्रकृतिक पतद्ग्रहस्थान में संक्रमित होती हैं । अन्तरकरण करने के बाद लोभ के सिवाय बाईस, नपुंसकवेद के उपशांत होने पर इक्कीस और स्त्रीवेद के उपशमित होने पर बीस प्रकृतियां सात प्रकृति रूप पतद्ग्रहस्थान में संक्रान्त होती हैं । तथाछसु वीस चोद तेरस तेरेक्कारस य दस य पंचसि ।
दसडसत्त चउवके तिगंमि सग पंच चउरो य ॥ २८ ॥
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शब्दार्थ –छसु - छह में, बीस चोद्द तेरस – बीस, चौदह, तेरह, तेरेक्कारस- तेरह, ग्यारह, य-और, दस- - दस, य-और, पंचमि — पांच में, दसड- -दस, आठ, सत्त - सात, चक्के- -चार में, तिगंमि—तीन में, सग पंच चउरो - सात, पांच, चार, य― और ।
गाथार्थ - छह में बीस, चौदह और तेरह प्रकृतियां तथा पांच में तेरह, ग्यारह, दस प्रकृतियां, चार में दस, आठ और सात प्रकृतियां तथा तीन में सात, पांच और चार प्रकृतियां संक्रांत होती हैं ।
विशेषार्थ - पतदुग्रह में से पुरुषवेद के कम होने पर छह प्रकृतियों में पूर्वोक्त बीस प्रकृतियां संक्रांत होती हैं तथा हास्यषट्क के उपशमित होने पर चौदह प्रकृतियां छह के पतद्ग्रहस्थान में संक्रमित होती हैं और पुरुषवेद के उपशांत होने पर तेरह प्रकृति संक्रांत होती हैं ।
क्रोध के पतद्ग्रह में से कम होने पर पांच में तेरह प्रकृतियां संक्रांत होती हैं । अप्रत्याख्यानावरण- प्रत्याख्यानावरण मान के उपशांत होने
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