________________
पंचसंग्रह : ७ अयशःकीर्ति में से एक, इस प्रकार देवगतिप्रायोग्य अटठाईस प्रकृतियों का बंध करने पर एक सौ दो की सत्ता वाले सम्यग्दृष्टि अथवा मिथ्यादृष्टि मनुष्य, तिर्यंच के यथायोग्य रूप से अट्ठाईस में एक सौ दो प्रकृतियां संक्रमित होती हैं । तथा---
जिसने पहले नरकायु का बंध किया है और नरक में जाने के सन्मुख हुआ है, ऐसे तीर्थंकरनाम के साथ छियानवै की सत्ता वाले मिथ्यादृष्टि मनुष्य के नरकयोग्य अट्ठाईस प्रकृति बांधते छियानवै प्रकृतियां अट्ठाईस में संक्रमित होती हैं।
पंचानवै के संक्रम का विचार एक सौ दो प्रकृतियों के संक्रम के अनुरूप जानना चाहिये । मात्र एक सौ दो के स्थान पर पंचानवै प्रकृतियां कहना चाहिये तथा देवगतियोग्य पूर्वोक्त अट्ठाईस प्रकृतियों को बांधने पर तेरानवै की सत्ता वाले मिथ्यादृष्टि के वैक्रियसप्तक और देवद्विक की बंधावलिका बीतने के बाद तेरानवै प्रकृतियां अट्ठाईस में संक्रमित होती हैं, अथवा पंचानव की सत्ता वाले मिथ्यादृष्टि के देवगतियोग्य अट्ठाईस प्रकृतियां बांधने पर देवद्विक की बंधावलिका बीतने के पूर्व तेरानवै प्रकृतियां अट्ठाईस में संक्रमित होती हैं, अथवा तेरानवै की सत्ता वाले मिथ्यादृष्टि के नरकगतियोग्य अट्ठाईस कर्मप्रकृतियों को बांधते वैक्रियसप्तक और नरकद्विक की बंधावलिका बीतने के बाद तेरानवै प्रकृतियां अट्ठाईस में संक्रमित होती हैं, अथवा पंचानवै की सत्ता वाले मिथ्यादृष्टि के नरकगतियोग्य पूर्वोक्त अट्ठाईस प्रकृति का बंध होने पर नरकद्विक की बंधावलिका बीतने के पूर्व अट्ठाईस में तेरानवै प्रकृतियां संक्रान्त होती हैं।
तेरानवै की सत्ता वाला मिथ्यादृष्टि देवगतियोग्य अट्ठाईस प्रकृतियां बांधने पर देवद्विक और वैक्रियसप्तक की बंधावलिका बीतने के पूर्व चौरासी प्रकृतियां अट्ठाईस में संक्रमित करता है, अथवा तेरानवै की सत्ता वाला मिथ्यादृष्टि नरकयोग्य अट्ठाईस प्रकृतियों को बांधते नरकद्विक और वैक्रियसप्तक की बंधावलिका बीतने के पूर्व अट्ठाईस में चौरासी प्रकृतियों को संक्रमित करता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org |