Book Title: Panchsangraha Part 07
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : ७
रहे तब ऊपर की एक समय प्रमाण स्थिति अपवर्तनाकरण द्वारा संक्रमित होती है, परन्तु मतिज्ञानावरणादि की तरह समयाधिक आवलिका शेष रहे तब नहीं । मतिज्ञानावरणादि में समयाधिक आवलिका प्रमाण स्थिति की सत्ता शेष रहे तब तक अपवर्तना होती है । लेकिन निद्राद्विक में आवलिका के असंख्यातवें भाग अधिक दो आवलिका रहे, वहाँ तक होती है और इसका कारण जीवस्वभाव है ।
अनिवृत्तिबादरसंप रायगुणस्थान में वर्तमान क्षपक के हास्य, रति, अरति, शोक, भय और जुगुप्सा रूप हास्यषट्क का क्षय होते संख्यात वर्ष प्रमाण स्थिति सत्ता में शेष रहती है, तो उस संख्यात वर्ष प्रमाण स्थिति का संज्वलन क्रोध में जो संक्रम होता है वह उसका जघन्य स्थितिसंक्रम है । उसका स्वामी नौवें गुणस्थानवर्ती जीव है । उस समय उसकी यत्स्थिति अन्तर्मुहूर्त अधिक संख्यात वर्ष प्रमाण है । इसका कारण यह है कि अन्तरकरण में रहते हुए भी वह संख्यात वर्ष प्रमाण स्थिति को संज्वलन क्रोध में संक्रमित करता है । अन्तरकरण में दलिक नहीं होते हैं, किन्तु उससे ऊपर होते हैं। क्योंकि वह दलिकरहित शुद्ध स्थिति है, इसलिये अन्तरकरण के काल से अधिक संख्यात वर्ष प्रमाण स्थिति जघन्य स्थितिसंक्रमकाल में हास्यषट्क की यत्स्थिति है । इस संख्यात वर्ष प्रमाण स्थिति को अपवर्तनाकरण द्वारा अपवर्तित करके संज्वलन क्रोध की उदयावलिका में संक्रमित करता है यह समझना चाहिये । यदि ऐसा न हो तो स्थिति बहुत होने से उदयावलिका के ऊपर के भाग में प्रक्षेप हो और वैसा हो तो अन्यप्रकृति का उदयावलिका में जो अन्तिम संक्रम होता है वह जघन्य संक्रम कहलाता है', इस पूर्वोक्त वचन से विरोध आता है । इसलिये संख्यात वर्ष प्रमाण स्थिति को अपवर्तित करके उदयावलिका में संक्रमित करता है, ऐसा मानना चाहिये । तथा
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गाथा ४५
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