Book Title: Panchsangraha Part 07
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : ७
क्षपितशेष, चउगइउ-चतुर्गतिक--चारों गतियों में से किसी भी गति वाला, ताओ-तब फिर, होउं--होता है, जहण्णठितिसंकमस्सामी-जघन्य स्थितिसंक्रम का स्वामी।
गाथार्थ-मिथ्यात्व और मिश्र मोहनीय का क्षय करके जब मनुष्य सम्यक्त्वमोहनीय क्षपितशेष हो तब चारों गति में से किसी भी गति में जाकर उसकी समय प्रमाण जघन्य स्थिति संक्रमित करता है और उसका स्वामी चारों गतियों में से किसी भी गति का जीव होता है। विशेषार्थ-गाथा में सम्यक्त्वमोहनीय के जघन्य स्थितिसंक्रम का प्रमाण एवं उसके स्वामी का निर्देश किया है
जघन्यतः आठ वर्ष से अधिक आयु वाला कोई मनुष्य क्षायिक सम्यक्त्व उपाजित करते हुए मिथ्यात्व और मिश्र मोहनीय का सर्वथा क्षय करके सम्यक्त्वमोहनीय को सर्वापवर्तना द्वारा अपवर्तित करता है। इस प्रकार जब सर्वापवर्तना होती है तब सम्यक्त्वमोहनीय क्षपितशेष होती है। इस प्रकार जब सम्यक्त्वमोहनीय क्षपितशेष हो तब चारों में से चाहे किसी भी एक गति में जा सकता है, जिससे उस गति में जाकर वहाँ उसकी समयाधिक आवलिका शेष रहे तब उदयावलिका से ऊपर की उस समय प्रमाण स्थिति को अपवर्तनासंक्रम द्वारा अपनी आवलिका के समयाधिक तीसरे भाग में संक्रमित करता है, जो उसका जघन्य स्थितिसंक्रम कहलाता है और स्वामी चारों
१ सर्वापवर्तना द्वारा अपवर्तित करता है, यानि व्याघातभाविनी अपवर्तना
द्वारा जितनी स्थिति कम हो सकती है, उतनी करता है। अब जितनी स्थिति सत्ता में रही उतनी स्थिति लेकर मरण प्राप्त कर सकता है और चाहे जिस गति में परिणामानुसार जा सकता है इसी कारण उसके जघन्य स्थितिसंक्रम का स्वामी चार में से किसी भी गति का जीव हो
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