Book Title: Panchsangraha Part 07
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : ७ छोड़कर शेष प्रकृतियों के लिये समझना चाहिये।
वह जघन्य स्थितिसंक्रम किस प्रकृति का कितना होता है ? अब इसका निर्देश करते हैं। प्रत्येक प्रकृति का जघन्य स्थितिसंक्रम प्रमाण
संजलणलोभनाणंतराय-दसणचउक्कआऊणं ।
सम्मत्तस्स य समओ सगआवलियातिभागंमि ॥४६॥ शब्दार्थ-संजलणलोभ-संज्वलनलोभ, नाणंतराय-ज्ञानावरण, अंतराय, दंसणचउक्क–दर्शनावरणचतुष्क, आऊणं-आयु का, सम्मत्तस्ससम्यक्त्वमोहनीय का, य-और, समओ-समय, सगआवलियातिभागंमिअपनी आवलिका के तीसरे भाग में ।
गाथार्थ-संज्वलन लोभ, ज्ञानावरण, अंतराय, दर्शनावरणचतुष्क, आयु और सम्यक्त्वमोहनीय का अपनी आवलिका के तीसरे भाग में समय प्रमाण स्थिति का जो संक्रम होता है, वह उनका जघन्य स्थितिसंक्रम है। विशेषार्थ-संज्वलन लोभ, ज्ञानावरणपंचक, अंतरायपंचक, दर्शनावरणचतुष्क, आयुचतुष्क और सम्यक्त्वमोहनीय कुल मिलाकर बीस प्रकृतियों की स्थिति का क्षय होते सत्ताविच्छेद काल में उनकी एक समय प्रमाण स्थिति का अपनी ही उदयावलिका के समयाधिक तीसरे भाग में होने वाला प्रक्षेप, वह उनका जघन्य स्थितिसंक्रम कहलाता है। - इसका तात्पर्य यह है कि क्षपकश्रेणि में सूक्ष्मसंपरायगुणस्थान में क्षय करते जब संज्वलन लोभ की समयाधिक आवलिका प्रमाण स्थिति शेष रहे तब उदयावलिका सकल करण के अयोग्य होने से
१. निद्राद्विक के जघन्य स्थितिसंक्रम का प्रमाण स्वतंत्र रूप में आगे बताया
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