________________
पंचसंग्रह : ७ जिज्ञासु का प्रश्न है कि प्रकृतिसंक्रम के विषय में जीव संक्रमती प्रकृतियों में से उनके परमाणु रूप दलिकों को खींचकर पतद्ग्रहप्रकृति रूप संक्रमित नहीं करता है। अर्थात् संक्रमित होने वाली प्रकृति में रहे हुए दलिकों को खींचकर पतद्ग्रहप्रकृति रूप नहीं करता है । अतएव यदि ऐसा हो तो परमाणु रूप दलिकों का संक्रम प्रकृतिसंक्रम नहीं कहा जायेगा। क्योंकि परमाणुओं का संक्रम तो प्रदेशसंक्रम कहलाता है, किन्तु प्रकृतिसंक्रम नहीं। __ अब कदाचित यह कहा जाये कि प्रकृति यानी स्वभाव, उसका जो संक्रम, वह प्रकृतिसंक्रम तो वह भी अयोग्य है । क्योंकि कर्मपरमाणुओं में वर्तमान ज्ञानावरणत्वादि स्वभाव को अन्य में संक्रमित करना अशक्य है । क्योंकि पुद्गलों में से केवल स्वभाव को खींचा नहीं जा सकता है । इस प्रकार से विचार करने पर प्रकृतिसंक्रम घटित नहीं हो सकता है। इसलिये उसका प्रतिपादन करना बंध्यापुत्र के सौभाग्य आदि के वर्णन करने जैसा है।
स्थिति, अनुभाग संक्रम के विषय में भी जिनका कथन आगे किया जाने वाला है, वह भी अयुक्त है। विचार करने पर वे दोनों घटित नहीं हो सकते हैं । क्योंकि नियतकाल पर्यन्त अमुक स्वरूप में रहने को स्थिति कहते हैं और काल के अमूर्त होने से अन्य में संक्रान्त करना, अन्य स्वरूप करना अशक्य है । अनुभाग रस को कहते हैं और रस तो परमाणुओं का गुण है। गुण गुणी के सिवाय अन्य में संक्रान्त किये नहीं जा सकते हैं और गुणी-गुण वाले परमाणुओं का जो संक्रम होता है, वह प्रदेशसंक्रम कहलाता है । इस प्रकार विचार करने पर स्थितिसंक्रम और अनुभागसंक्रम भी घटित नहीं हो सकता है ।
जिज्ञासु के इस प्रश्न का समाधान करते हुए आचार्य उत्तर देते
संक्रमित होती प्रकृतियों के परमाणु जब पतद्ग्रहप्रकृति रूप होते हैं तब तद्गत स्वभाव, स्थिति और रस भी पतद्ग्रहप्रकृति के
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org