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पंचसंग्रह : ७ तीन प्रकृतिक पतद्ग्रहस्थान में संक्रमित होती हैं तथा अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण क्रोध के उपशांत होने के बाद नौ प्रकृतियां
और संज्वलन क्रोध के उपशमित होने पर आठ प्रकृतियां तीन में संक्रमित होती हैं।
दो प्रकृतिक पतद्ग्रहस्थान में आठ, छह और पांच प्रकृतियां संक्रान्त होती हैं-'दुगे अट्ठछप्पंच' । वे इस प्रकार---संज्वलन मान के पतद्ग्रह में से कम होने के बाद आठ प्रकृतियां दो में संक्रमित होती हैं । अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण मान के उपशमित होने के बाद छह प्रकृतियां और संज्वलन मान के उपशांत होने पर पांच प्रकृतियां माया और लोभ इस दो प्रकृतिक पतद्ग्रहस्थान में संक्रमित होती हैं । तथा
पण दोन्नि तिनि एक्के उवसमसेढीए खइयदिट्ठिस्स । इयररस उ दो दोसु सत्तसु वीसाइ चत्तारि ॥२७॥ शब्दार्थ-पण दोन्नि तिन्नि-पांच, दो, तीन, एक्के-एक में, उवसमसेढीए-उपशमश्रेणि में, खइयदिहिस्स--क्षायिक सम्यग्दृष्टि के, इयरस्सइतर के-उपशमश्रेणि में उपशम सम्यग्दृष्टि के, उ-और, दो-दो, दोसुदो में, सत्तसु-सात में, वीसाइ चत्तारि-बीस आदि चार ।
गाथार्थ-उपशमश्रेणि में क्षायिक सम्यग्दृष्टि के एक में पांच, दो और तीन प्रकृतियां और इतर–उपशमश्रेणि में उपशमसम्यग्दृष्टि के दो में दो तथा सात में बीस आदि चार संक्रमित होती हैं।
विशेषार्थ-माया के पतद्ग्रह में से दूर होने पर एक लोभ में पांच प्रकृतियां संक्रान्त होती हैं। अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यावरण माया के उपशांत होने पर तीन प्रकृतियां एक लोभ में और संज्वलन माया के उपशांत होने पर मात्र अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण ये दो लोभ संज्वलन लोभ पतद्ग्रह रूप हो वहाँ तक एक में संक्रमित होते हैं।
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