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XXXII : पंचलिंगीप्रकरणम्
७.
अवात्सल्य - साधर्मिकों के प्रति वात्सल्य - साधर्मिकों के प्रति अनुराग का अभाव,
स्वाभाविक अनुराग, अप्रभावना - धर्मोन्नति के लिये प्रभावना - धर्मोन्नति के लिये प्रयासरत नहीं रहना।
प्रयासरत रहना। सम्यग्दर्शन के प्रकार -
सम्यक्त्व के प्रकट होने के हेतु से यह दो प्रकार का हो सकता है - १. निसर्ग सम्यक्त्व जो स्वतः प्राकृतिक रूप से उत्पन्न होता है तथा २. अधिगम सम्यक्त्व जो किन्हीं बाह्य प्रकरणों से उत्पन्न होता है। इन्हें निम्न दस वर्गों में बॉटा गया है: - १. निसर्गरुचि सम्यक्त्व - ऐसा सम्यक्त्व जो स्वतः पूर्व-स्मरणादि से
उत्पन्न हो निसर्गरुचि सम्यक्त्व कहलाता है। २. उपदेशरुचि सम्यक्त्व - जो किसी अन्य के उपदेश से उत्पन्न हो
वह उपदेशरुचि सम्यक्त्व है। ३. आज्ञारुचि सम्यक्त्व - आज्ञा का अर्थ है भगवान जिनेश्वर देवों के
वचन। जो सम्यक्त्व जिन-वचनो के श्रवणादि से उत्पन्न हो
आज्ञारुचि सम्यक्त्व कहलाता है। ४. सूत्ररुचि सम्यक्त्व - आगम-शास्त्रादि धर्म-ग्रंथों के अध्ययन-श्रवण
आदि से उत्पन्न हुवा सम्यक्त्व सूत्ररुचि सम्यक्त्व कहलाता है। ५. बीजरुचि सम्यक्त्व - आंशिक सम्यक्त्व के बीज से संपूर्ण सम्यक्त्व
का प्राप्त होना बीजरुचि सम्यक्त्व है। ६. अभिगमरुचि सम्यक्त्व - आगम-शास्त्रों के अर्थ के स्पष्ट होने पर
उत्पन्न सम्यक्त्व अभिगमरुचि सम्यक्त्व कहलाता है। ७. विस्ताररुचि सम्यक्त्व - आगम-व्याख्या साहित्य के पारायणोपरांत ___ उत्पन्न होले वाला सम्यक्त्व विस्ताररुचि सम्यक्त्व कहलाता है। ८. क्रियारुचि सम्यक्त्व - धर्म-क्रियाओं के करने से जो सम्यक्त्व