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१६४ : पंचलिंगीप्रकरणम्
तव्वइरित्तो धम्मा-धम्मगासाई
होइ
अजीवो
वि।
अगमविहिया
धम्मा
धम्मागासो मुणेयव्वा ।। ८४।। तद्व्यतिरिक्तः धर्माधर्माकाशादियः
भवति
अजीवोऽपि।
आगमविहिता
धर्मा
धर्माकाशाः
ज्ञातव्याः ।। ८४।।
उस चेतन आत्मा के अतिरिक्त,
होते हैं धर्मा-धर्माकाशादि अजीव भी।
जिनके स्वरूप का ज्ञान तो,
देते हैं
आगम शास्त्र ही।। ८४।।
८४. उस (चेतन आत्मा) के अतिरिक्त धर्म (धर्मास्तिकाय), अधर्म (अधर्मास्तिकाय), आकाश, आदि अजीव पदार्थ भी हैं। आगम में विहित (बताए गए) लक्षणों के द्वारा इन (धर्म, अधर्म, आकाश, काल, और पुद्गल) के स्वरूप को जानना चाहिये।