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१६६ : पंचलिंगीप्रकरणम् जदणंतनेयनाणी जीवो
कम्मेहिं
वेढिओ
न
तहा।
ता कम्मक्खयभावे
अणंतनाणीणो सया सिद्धा।। १०० ।।
यदनन्तज्ञेयज्ञानी जीवः
कर्मभिः तस्मात्कर्मक्षयभावे
वेष्टितः
न
तथा।
तथा।
अनन्तज्ञानिनः सदा सिद्धाः।। १००।।
कर्म रहते अनन्त ज्ञेय पदार्थों का ज्ञाता भी
अनन्तज्ञानी नहीं होता सर्वज्ञ। कर्मक्षय होने पर तो हो जाता है अनन्तज्ञानी
और सिद्ध वह सर्वज्ञ ।। १००।।
१००. जिस कारण से अनन्तज्ञेय पदार्थों का ज्ञाता (जानने वाला संसारी आत्मा) कर्मों से आवृत्त होने से अनन्तज्ञानी नहीं कहलाता है,
और उसी कारण से उन कर्मों के क्षय होजाने पर (वह) अनन्तज्ञानी (भी होता है तथा) सिद्ध हो जाता है, अर्थात् कर्म क्षय के कारण सिद्धात्मा सदैव अनन्तज्ञानी होते हैं।