Book Title: Panchlingiprakaranam
Author(s): Hemlata Beliya
Publisher: Vimal Sudarshan Chandra Parmarthik Jain Trust

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Page 296
________________ xii : पंचलिंगीप्रकरणम् शरीर पृथ्वी हो फल - परिणाम बलदेव - महान पराक्रमी त्रिषष्टी शलाकापुरुषों में गण्य महापुरुष बहुमान - मान-सम्मान करना बाल - प्रज्ञाहीन बीभत्स - घृणित बुद्ध - आत्मज्ञानी बंध - बंधन (यहाँ कर्मबंध) भव्य - अंततः मुक्तियोग्य जीव भाव - अंतर्मनस्थिति भावना - अवाक् स्मरण, चिंतन, विचारसरणी भूत - प्राणी भैषज्य - आयुर्वेद चिकित्सा भोक्ता - कृत कर्म को भोगने वाला मन - मनस्, मस्तिष्क मानस - इरादा मार्ग - रास्ता, मुक्तिमार्ग मिथ्यात्व - गलत दृष्टिकोण का होना मिथ्यादर्शन - गलत दृष्टिकोण मिथ्यादृष्टि - जिसका दृष्टिकोण मिथ्या हो मिथ्याभिनिवेश - असत्य विश्वास मुक्तात्मा - कर्ममुक्त जीव मुद्गर - भारी डंडा, गदा मुनि - मौनसाधक, साधु मोक्ष - निःशेष कर्ममुक्ति मोह - राग-द्वेष से होने वाला दृष्टिविभ्रम यति - साधु रत - सांसारिक भोग-विलास में निमग्न रत्नत्रय - सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र की त्रिवेणी रमण - भोग-विलास में आनंदित होना राग - लगाव लिंग - चिह्न, संकेतक वचन - बोलने की क्षमता वध - मारना, पीटना, ताड़ना वनस्पतिकाय - ऐसे प्राणी जिनका शरीर वनस्पति हो । वसति - साधुओं के रहने के लिये उपाश्रय वासर - दिन वायुकाय - ऐसे प्राणी जिनका शरीर वायु हो विकास - फैलना विज्ञानक्षण - वह क्षण जिसमें पिछले क्षण का ज्ञान हो

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