Book Title: Panchlingiprakaranam
Author(s): Hemlata Beliya
Publisher: Vimal Sudarshan Chandra Parmarthik Jain Trust

View full book text
Previous | Next

Page 294
________________ x : पंचलिंगीप्रकरणम् भाषा दुष्प्रयुक्त - हीनकर्म में नियुक्त देव - स्वर्गलोक का वासी देवलोक - देवों के निवास का लोक, ऊर्ध्वलोक देवसुत - बौद्ध क्षणिकवादी देवविमान - तारादि आकाशीय • पिण्ड का शास्त्र फलित ज्योतिष है) तड़ाग - सरोवर तप - कर्मनिर्जरा हेतु की जाने वाली क्रियाएँ तिरस्कार - अपमान, अवमानना, हीलना तिर्यंच - देव, मनुष्य व नारकों से इतर जीव जगत तुरग - अश्व तीर्थकर - संसारसागर से पारलगाने के लिये तीर्थ (तीर या किनारे) की स्थापना करने वाले जिनेश्वर- देव तेजस्काय - अग्नि जिनकी काया हो ऐसे जीव त्रसकाय - चर जीवजगत तृष्णा - सांसारिक भोगों की इच्छा त्रिभाग - तीसरा भाग, एक तिहाई दमन - दबाना दलित - दमन किया गया दान - स्वेच्छा से अपनी वस्तु को परोपकार की भावना से दूसरों को देना दारादि - पत्नी आदि परिवार दारिद्र्य - गरीबी, दद्रिता, साधनहीनता दुःख - क्लेश दुष्टभाषा - असत्य व असम्यक देहव्यापक - शरीरभर में व्याप्त देशव्रती/देशयति - जिसनें श्रावक के बारह व्रतों में से एकाधिक _व्रत ग्रहण किये हों देवेन्द्र - देवाधीश दोष - नियमविरुद्ध द्रव्य - जीव व अजीव द्वेष - विमुखता, विरुचि धन - संपत्ति धर्म - कर्तव्य को करना व अकर्तव्य को छोड़ना धर्म (धर्मास्तिकाय) - गति का माध्यम, ईथर धीर - धैर्यवान् धूलिगृह - रेत का घरोंदा घृति - धैर्य ध्यान - एकाग्रचित्तता नय - किसी एक पक्ष का निरूपण नरक - अधोलोक में ऐसी जगह

Loading...

Page Navigation
1 ... 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316