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१७० : पंचलिंगीप्रकरणम्
सुहदुहरूवो नियमेण अत्थि
तह
आसवो
भवत्थाण।
सदणुट्ठाणा
पढमो
पाणवहाईहिं बीओ उ।। ८७।।
शुभाशुभरूपः नियमेन अस्ति
तथा
आसवः
भवस्थानाम्।
सदनुष्ठानात्
प्रथमः
प्राणिवधादिभ्यः द्वितियस्तु ।। ८७।।
नियम से शुभाशुभ आम्नव होते हैं,
प्राणियों के
अपने
भाव-विभाव से।
तथा शुभ कार्य से शुभानव और
हिंसादि से अशुभ स्वभाव से।। ८७।।
८७. वैसे संसारी प्राणियों के (उनके अपने भाव या विभाव तथा सुकर्म या दुष्कर्म से) शुभ-अशुभ रूप (कर्म) आनव नियम से होते हैं। सदनुष्ठान (सत्कार्य करने) से पहला (शुभानव) होता है तथा जीवहिंसादि (असत्कार्य से) दूसरा (अशुभानव) होता ही है।