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६ : पंचलिंगीप्रकरणम्
प्रथमलिंग : उपशम मिच्छाभिनिवेसस्स उ नायव्वो,
उवसमो इहं लिङ्गं । चारित्तमोहनीयं जेण,.
कसाया
समाइट्ठा
।।
२।।
मिथ्याभिनिवेशस्य खलु ज्ञातव्यः उपशमः इह लिङ्गम्। चारित्रमोहनीयम् येन कषायाः समादिष्टाः ।। २ ।।
इस लक्षण को निश्चित जानो मिथ्याभिनिवेश का उपशम । क्योंकि क्लिष्ट-कषाय तो होते हैं चारित्र-मोहनीय कर्म सर्वप्रथम ।।२।।
२. सम्यक्त्व का प्रथम लक्षण है - 'उपशम'। मिथ्याभिनिवेश के उपशम को ही यह सम्यक्त्व का यह प्रथम लिंग जानना चाहिये। अर्थात् 'उपशम' से तात्पर्य है मिथ्याभिनिवेश (सर्वज्ञ-वचन के विपरीत अर्थ के प्रति आग्रह या पक्षपात) का उपशम। (कषाय का उपशम सम्यक्त्वलिंग नहीं है) क्योंकि कषाय (व नोकषाय) चारित्रमोहनीयकर्म कहे गए हैं।
यहाँ यह ध्यातव्य है कि उपशम का अर्थ मिथ्याभिनिवेश का उपशम है न कि अनंतानुबंधी कषायों का उपशम। मिथ्याभिनिवेश के शमन के फलस्वरूप अनंतानुबंधी कषायों का शमन तो हो ही जाता है।