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<: पंचलिंगीप्रकरणम्
चउवीससंतिकम्मी मिच्छाभावं
अणउदये वा सम्मं
न
पाउणा
इहरा ।
१
सासादणरूवं कहं हुज्जा ? ।। ३।।
चतुर्विंशतिसत्कर्मी मिथ्याभावं न प्राप्नुयात् इतरथा अनुदये वा सम्यक्त्वं सास्वादनरूपं कथं भवेत् ? ।। ३ ।।
मिथ्याभाव को प्राप्त न होता चौबीस सत्कर्मों का कर्ता । अन्य चार अनुदित रूपी सास्वादन - सम्यक्त्व कैसे होअथवा ? ।।3।।
३.
चौबीससत्कर्मी' (सम्यक्त्वी ) मिथ्यात्व को प्राप्त नहीं होते हैं यदि ऐसा नहीं मानेंगे तो अनुदय में सम्यक्तव सास्वादनरूप कैसे सिद्ध होगा? अर्थात् यदि कषायों के उपशम को सम्यक्तव का लक्षण मानते हैं तो चौबीस कषायमोहनीयकर्मों की सत्ता वाला सम्यग्दृष्टि आत्मा मिथ्यात्व को प्राप्त नहीं कर सकता अन्यथा अनंतानुबंधी कषायों के उदय में सास्वादनरूप सम्यक्त्व कैसे होगा ?
चौबीससत्कर्मी या चौबीस शांतिकर्मी सम्यक्त्वयों में मोहनीयकर्म की अट्ठाईस प्रकृतियों में से चार अनंतानुबंधी कर्मप्रकृतियाँ नहीं होती हैं अतः उन्हें चौबीस सत्कर्मी कहा जाता है । सास्वादनरूप अर्थात् सम्यक्त्व से च्युत होने पर भी होने की अवस्था सास्वादन गुणस्थान कहलाती है । 'रूप' में प्रयुक्त हुआ है जिसका भाव है सास्वादन लक्षण । यह द्वितीय स्थान पर परिगणित है ।
मिथ्यात्व को प्राप्त न
यहाॅ लक्षण के अर्थ चौदह गुणस्थानों में