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३० : पंचलिंगीप्रकरणम्
आवायसुंदरावि
भाविभवासंगकारणत्तणओ ।
विसया
सप्पुरिसाणं,
सेविज्जंता वि दुहजणया।। १५ ।।
आपातसुन्दरा
अपि
नु
भाविभवासङ्गकारणत्वात् ।
विषयाः
सत्पुरुषाणां
सेव्यमानापि दुःखजनकाः ।। १५ ।।
लगते मधुर किंतु निश्चित ही, होते हैं भावी भव-परम्परा कारक । सत्पुरुषों के लिये विषय तो, सेवित भी हैं दुःखदायक ।। १५ ।।
१५. आपाततः (प्रथमदृष्टया) इन्द्रियों को मधुर प्रतीत होने वाले विषय भी भावी (भविष्य में) जन्म-परम्परा (जन्म-मृत्यु रूपी भव-भ्रमण) के कारण होने से ये विषय सत्पुरुषों द्वारा सेवित किये जाने पर (भोगे जाने पर) भी दुःख उत्पन्न करने वाले होते हैं। अर्थात् ये विषय अन्ततः कायिक और मानसिक परिताप को उत्पन्न करते हैं तथा आगे भी नरकादि में ले जाने वाले होते हैं।