________________
४२ : पंचलिंगीप्रकरणम्
ता अलमिमेहिं मज्झ अज्जं कल्लं च दे चइस्सामि । मुक्खसुहाओ किमन्नं परमत्थेणत्थि सुक्खं ति ।। २१।।
तस्मादलमेभिः मोक्षसुखात्किमन्यत् परमार्थेनास्ति
चेह त्यक्ष्यामि। सुखमिति।। २१।।
अतः बस कर, छोड़ इन्हें, ये आज नहीं तो कल छूटेंगे। परमार्थ में मोक्ष ही सुख है, जिसमें सारे बंधन टूटेंगे।। २१।।
२१. उस कारण (अर्थात् विषय भोग की इच्छा या आसक्ति के भयंकर नरकादि गतियों का कारण होने) से मुझे इन विषय-भोगों के आस्वादन से बस करना चाहिये क्योंकि ये आज नहीं तो कल तो छूटने ही वाले हैं। आखिर मोक्षसुख के अतिरिक्त दूसरा वास्तविक सुख कौनसा है?
अथवा : उस कारण से मुझे इन विषयों से कोई तात्पर्य नहीं है। अतः (प्रव्रज्या स्वीकार करके) मैं आज नहीं तो कल इनका त्याग करूंगा ही। क्या वास्तव में मोक्षसुख से बढ़कर अन्य कोई सुख है?
भावार्थ : यहाँ शास्त्रकार संसार की भयावहता का चित्रण करने के पश्चात् पाठक को ससांसारिक सुखों व उनकी तृष्णा का भी त्याग करके सच्चे व वास्तविक मोक्षसुख की खोज रूपी संवेग को धारण करके निवृत्ति के मार्ग पर बढ़ने के लिये प्रेरित करते हैं।