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१६ : पंचलिंगीप्रकरणम्
अत्तत्तरुईरूवं मिच्छत्तस्स उ
न तं अणंताणं । असदग्गहो तओ खलु
मिच्छाभिनिवेसओ होइ ।। ७।।
अतत्त्वरुचिरूपम् च मिथ्यात्वस्य तु
न
तदनन्तानाम् ।
असद्ग्रहः ततः खलु
मिथ्याभिनिवेशात् जायते ।। ७।।
अतत्त्वरुचिरूप लक्षण मिथ्यात्व का
न होता अनन्तानुबन्धी कषाय । मिथ्याभिनिवेश से ही होता है
सदा असत्-अशोभन कार्य-व्यवहार ।। ७।।
७. अतत्त्व के प्रति रुचि मिथ्यात्त्व का लक्षण है न कि अनन्तानुबन्धी कषाय का। निश्चय ही एस मिथ्याभिनिवेश से असद्ग्रह उत्पन्न होता है। यहाँ भी शास्त्रकार सम्यक्त्व का सम्बन्ध तत्त्वरुचि के साथ स्थापित कर रहे हैं तथा अनन्तानुबंधी कषाय के साथ नहीं।