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२६ : पंचलिंगीप्रकरणम्
सढयाइ पक्खसाहणजुत्ती वि, असग्गहो मुणेयव्वो । जणरंजणत्थपसमो न होइ, समत्तगमओ उ ।। १३ ।।
शठतया पक्षसाधनयुक्तिरपि, असद्ग्रहो ज्ञातव्यः । जनरंजनार्थप्रशमो न भवति, सम्यक्त्वगमकस्तु ।। १३ ।।
मायावी पक्षसाधनयुक्ति भी, असद्ग्रह होती है जानो । जनरंजनार्थ बाह्याचार भी, होता नहीं सम्यक्त्वकर मानो।। १३ ।।
१३. दूसरों को प्रभावित करने के लिये मायापूर्वक, धूर्ततापूर्वक स्व-पक्ष साधन हेतु युक्तियों का प्रयोग भी असद्ग्रह अर्थात् मिथ्याभिनिवेशक ही होता है तथा लोकरंजन के लिये, दिखावे के लिये बाह्याचार का उत्कृष्ट पालन भी सम्यक्त्वकारक नहीं होता है। यह बात जानने और मानने योग्य है।
।। इति प्रथमलिंगम्।।