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पंचलिंगीप्रकरणम्
श्रीमज्जिनेश्वरसूरिकृत
पंचलिङ्गी - प्रकरण
सम्यक्त्व के लक्षण :
उवसम संवेगो वि य निव्वेओ
अत्थिक्कं चिय,
तह य होइ अणुकम्पा ।
पंचवि हवंति सम्मत्तलिंगाई ।। १ ।।
उपशम-संवेगाश्चापि निर्वेदो तथा भवति चानुकम्पा । आस्तिक्यमेव पञ्चापि भवन्ति सम्यक्तवलिङ्गानि ।। १ ।।
उपशम संवेग और निर्वेद तथा होती है अनुकम्पा भी । आस्तिक्य सहित ये पाँचों होते हैं लक्षण 'सम्यक्त्व' के ही ।। १ ।।
क्रोध,
क्लिष्टतम महा-कषायों
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उपशम (अनन्तानुबन्धी मान, माया और लोभ रूपी चारित्रमोहनीयकर्म को उदय करने वाले मिथ्याभिनिवेश की मंदता ), संवेग (मोक्ष प्राप्ति की तीव्रातितीव्रतम इच्छा), निर्वेद (सांसारिकता के प्रति वैराग्य), अनुकम्पा (दीन - दुःखियों के प्रति दयालुता अर्थात् उनके दुःख को संवेदनापूर्वक महसूस करके उसे यथाशक्ति दूर करने का उपाय करना) तथा आस्तिक्य ( जिनेश्वर प्रणीत धर्म के प्रति दृढ़ श्रद्धा ) ये पाँच सम्यक्त्व के लक्षण हैं ।
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