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आमुख : XXXIII
उत्पन्न होता है वह क्रियारुचि सम्यक्त्व कहलाता है। ६. संक्षेपरुचि सम्यक्त्व - संक्षेप में यह समझ में आजाना कि सर्वज्ञ
जिनेश्वर देवों ने जो भी उपदेश दिया है वह हितकारी व
मोक्षदायक है संक्षेपरुचि सम्यक्त्व कहलाता है। १०.धर्मरुचि सम्यक्त्व - जिन प्रतिपादित धर्म पर पूर्ण श्रद्धा रूप
सम्यक्त्व धर्मरुचि सम्यक्त्व है।
वर्तमान काल में सम्यक्त्व प्राप्ति व उसे सुरक्षित रखने के साधन हैं - सुगुरु व सुशास्त्रों प्रति श्रद्धा-भक्ति व उनका उपदेश-श्रवण व पठन-पाठन। .
प्राप्त सम्यक्त्व के अस्थायित्व या स्थायित्व के हेतु से यह सात मिथ्यात्व-कारणों के उपशम, क्षयोपशम (कुछ कारणों के क्षय तथा अन्य कारणों के उपशम) या संपूर्ण क्षय के आधार पर निम्न तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है - १. औपशमिक सम्यक्त्व. - (१-४) चार अनंतानुबंधी-कषायों -
अनंतानुबंधी-क्रोध, अनंतानुबंधी-मान, अनंतानुबंधी-माया व अनंतानुबंधी-लोभ; ५. मिथ्यादृष्टिजनक मिथ्यात्व-मोहनीय कर्म, ६. सम्यक्मिथ्यादृष्टिजनक मिश्रमोहनीय कर्म तथा ७.सम्यग्दृष्टि को आवृत्त करने वाले सम्यक्त्व-मोहनीय कर्म के उपशम से स्वल्प काल के लिये प्रकट होने वाला सम्यक्त्व औपशमिक-सम्यक्त्व कहलाता है। यह सम्यक्त्व अस्थाई होता है तथा इसकी अधिकतम स्थिति एक अंतर्मुहुर्त (४८ मिनट से कम)' की होती है। इस प्रकार का सम्यक्त्व मोहनीय कमों के उदय में आने पर तथा
अनंतानुबंधी-कषायों के प्राकट्य से पुनः लुप्त हो जाता है। २. क्षायोपशमिक सम्यक्त्व - इन्हीं सात कारणों में से कुछ के क्षय व
१ मुहुर्त का काल-मान ४८ मिनट का होता है अतः एक अंतर्मुहुर्त ४८ मिनट से कम काल-मान का होता है।