Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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॥१८॥
पद्म । वृक्ष शोभायमान हैं। और जहां जाति विरोधी जीवों नेभी वैर छोड़दिया है, पक्षी बोल रहे हैं उन के पुराण शब्दों से मानो पहाड़ गुंजार ही करे है, और भ्रमों के नाद से मानो पहाड़ गान ही कर रहा है, सघन
वृक्षों के तले हाथियों के समूह बैठे हैं, गुफाओं के मध्य सिंह तिष्ठे हैं, जैसे कैलास पर्वत पर भगवान् ऋषभ देव विराजे थे तैसे विपुलाचल पर श्री वर्धमान स्वामी विराजे हैं।
जब श्रीभगवान् समोसरण में केवल ज्ञान संयुक्त विराजमान भये तब इन्द्रका श्रासन कम्पायमान भया, इन्द्रने जाना कि भगवान केवल ज्ञान संयुक्त विराजे हैं मैं जायकर बन्दना करूं इन्द्र ऐरावत हाथी पर चढकर पाए वह हाथी शरद के बादल समान उज्ज्वल है मानो कैलास पर्वत ही सुवर्ण की सांकलनसे संयुक्त है जिसका कुम्भस्थल भृमरोंकी पंक्तिसेमण्डितहै जिसने दशोंदिशा मुगन्धसे ब्याप्त करी है महा मदोन्मन्त है, जिसके नख सचिक्कण हैं जिसके रोम कठोर हैं जिसका मस्तक भले शिष्य के समान बहुत विनयवान और कोमल है, जिसका अंगदृढहै और दीर्घ कायहै जिसका स्कंध छोटा है मद झरेहै और नारद समान कलह प्रियहै, जैसे गरुड़ नागको जीते तैसे यह नाग अर्थात् हाथीयों को जीते है जैसे रात्री नक्षत्रों की माला शोभेहै तैसे यह नक्षत्र माला जो आभरण उससे शोभहै सिन्धुर कर अरुण (लाल) ऊंचाजो कुम्भस्थल उस से देव मनुष्यों के मनको हरे है, ऐसे ऐरावत गज पर चढकर सुरपति आए और भी देव अपने अपने बाहनों पर चढ कर इन्द्र के संग आये जिनके मुख कमल जिनेन्द्र के दर्शन के उत्साह से फूल रहेहैं, सोलहही स्वर्गों के समस्त देव और भवन बासी व्यन्तर ज्योतिषी सर्बही आये और कमलायुध श्रादि अखिल विद्याधर अपनी स्त्रियों सहित आए, वे विद्याधर रूप और विभा में देवों के समान हैं |
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