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नंदनवन
सूची दी गई है जिसमें 21 विषय समाहित हैं। इन तीनों विवरणों में यह सूची प्रस्तुत विवेचन के लिये अधिक उपयुक्त है। सारणी-1 में उपरोक्त तीनों विवरणों से सम्बन्धित तुलनात्मक आंकड़े दिये गये हैं। इस सारणी के तुलनात्मक अध्ययन से ज्ञात होता है कि जहां 1973 तक 204 शोधकार्य हुये हैं, वहीं 1974-1983 के बीच 225 अतिरिक्त शोधकार्य हुये हैं अर्थात् इस कालखण्ड में पिछले वर्षों में हुई शोधों में शत-प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है। इसके विपर्यास में, 1983-93 के बीच शोधों की कुल संख्या 780 है जो 73-83 के दशक से 356 अधिक है। इससे स्पष्ट होता है कि इस दशक में पिछले दशक के 225 की तुलना में 356 शोधकार्य हुये हैं, अर्थात् 131 अधिक अर्थात् प्रायः 156 प्रतिशत अधिक शोध हुए। ऐसी आशा है कि 1993-2004 के दशक में यह वृद्धि और भी अधिक होगी। यह लगभग 200 प्रतिशत की सीमा पार कर सकती है। उदाहरणार्थ- अकेले जैन विश्वभारती से ही 1996-2001 तक 20 शोध-उपाधियां प्रदान की गई हैं और प्रायः 52 शोधार्थी पंजीकृत हैं। इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि जैन विद्याओं के अध्ययन और शोध के प्रति नयी पीढ़ी का रुझान बढ़ रहा है। यह और भी महत्त्वपूर्ण है कि जैन विद्या के शोधकों में दो-तिहाई से अधिक जैनेतर शोधक ही हैं। साथ ही, इस शोध-सूची से यह भी स्पष्ट है कि शोधकर्ताओं में प्रायः 30 प्रतिशत जैन एवं जैनेतर महिलायें, जैन साध्वियां या आर्यायें हैं। जैन साध्वियों में भी श्वेताम्बर साध्वियां लगभग 90 प्रतिशत हैं। दिगम्बर ब्रह्मचारिणी एवं आर्यिकायें तो 10 प्रतिशत से भी कम हैं। यह आशा की जाती है कि दिगम्बर ब्रह्मचारी एवं आर्यायें इस दिशा में और प्रगति करेंगी। सारणी 1 जैन विद्याओं में शोध : तुलनात्मक आंकड़े (1973-93). सामान्य
1973 1983
1993 प्रदेश विश्वविद्यालय 25
64 शोधकार्य
204 429
780 क. जैन शोधक 90
303 ख. जैनेतर शोधक शोध-प्रबन्ध प्रकाशन
168 प्रकाशन का प्रतिशत 15.6
21.5 प्रतिशत वृद्धि
100
156 1993 में उत्तरवर्ती दशक में जैन विद्या अध्ययन एवं शोध को प्रेरित एवं अधिक सुविधा सम्पन्न बनाने के लिये राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अनेक शोध एवं शिक्षण संस्थायें सामने आई हैं। इनमें जैन अकादमी, जैन अकादमी संघ, लन्दन, इन्स्टीट्यूज ऑफ जैनालॉजी, लन्दन, जैन अकादमिक
15
16
49
88 341
114
477
32
68
15.85
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