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कर्मवाद का वैज्ञानिक पक्ष : (415) निष्कर्ष के विपर्यास में जाता है। फलतः, पुण्य और पाप का सम्बन्ध निम्न दो रूपों में व्यक्त किया जा सकता है :
1 पुण्य = 2 पाप (कर्म सिद्धान्त)
1 पुण्य = 7 पाप (घनत्व के आधार पर) इन सम्बन्धों की यथार्थता का मूल्यांकन करना कठिन है, फिर भी, हम औसतन यह मान लें कि
1 पुण्य कर्म = (7 + 2) / 2 पाप कर्म = 5 पाप कर्म फलतः यह माना जा सकता है कि एक पुण्यमय कार्य प्रायः पांच पापमय कार्यों को उदासीन कर सकता है। निश्चित रूप से, पांच की संख्या 'एक' की संख्या की तुलना में 'बहु' तो मानी ही जा सकती है। यदि इस सम्बन्ध में अन्य कोई शास्त्रीय आधार या धारणा उपलब्ध हो, तो ज्ञानीजन लेखक को सूचित करें। __यहां यह भी विचार किया जा सकता है कि गृहस्थों के (या साधुओं के) छह दैनिक आवश्यक कर्तव्य (देव पूजा; आधे घंटे; गुरु वन्दन; चौथाई घंटे; स्वाध्याय; आधा घण्टा, प्रतिक्रमण; लगभग डेढ़ घंटे; आरती आदि; चौथाई घंटे) प्रायः तीन घंटे प्रतिदिन के हिसाब से किये जाते हैं। ये धार्मिक या पुण्यमय या अहिंसक वृत्तियां हैं। इनके विपर्यास में, सामान्य प्रवृत्तियां चौबीस घंटे चलती रहती हैं। इस प्रकार, पुण्य प्रवृत्तियों के तीन घंटे सामान्य प्रवृत्तियों के 24 घंटे की हिंसावृत्ति को उदासीन करते होंगे। इस प्रकार पुण्य और पाप का सम्बन्ध 3 : 24 या, 1 : 8 भी माना जा सकता है। चूंकि सभी लोग तीन घंटे की धार्मिक प्रवृत्तियां नहीं करते, इसलिये उनकी सामान्य प्रवृत्तियों की हिंसा की मात्रा निरन्तर वर्धमान होती रहती है। यह भी एक विचारणीय विषय है। इस प्रकार, पुण्य और पाप का सम्बन्ध 1 : 2, 1 : 5 या 1 : 8 आता है। इसका सूक्ष्म समीक्षण ज्ञानीजनगम्य है। 16. पश्चिमी विचारक और कर्मवाद ___ अनेक पश्चिमी कर्मवादी को पलायनवादी एवं निराशावादी मानते हैं। लेकिन शुभ कर्मों, शुभ गति एवं समृद्धि की धारणा इसे सदैव आशावादी, प्रगतिशील तथा उत्परिवर्तनशील बनाये रखती है। यह किसी राजनीतिक तंत्र से भी प्रभावित नहीं होती। यह व्यक्ति एवं समाज को आन्तरिक रूप से और भौतिक रूप से अच्छा समाजवादी और साम्यवादी बनाती है। महाप्रज्ञ के अनुसार, जीवविज्ञान, मनोविज्ञान, स्वास्थ्य विज्ञान आदि के अनुसंधानों से भी इसकी महत्ता पर प्रभाव नहीं पड़ता, क्योंकि ये बाह्य घटकों को ही प्रभावित करते हैं जबकि कर्मवाद का क्षेत्र आंतरिक शोधन भी है। मनुष्य की भौतिक एवं मानसिक प्रवृत्तियां कर्मवाद से परिशुद्ध होती हैं। लेकिन नये युग में यह
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