Book Title: Nandanvana
Author(s): N L Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 563
________________ बम्बई और लन्दन : (543) उप्रेक्षणीय-सी नहीं रहती। यही नहीं, उसका आनन्द और अनुभव करने पर उसकी मिठास और भी फूटने लगती है। शिक्षा जीवन का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण अंग है। प्रायः भारतीय युवक बम्बई से लन्दन की दौड़ इसीलिये लगाते हैं। क्या भारत में यह उच्चतम शिक्षा उपलब्ध नहीं हो सकती? लन्दन की शिक्षा पद्धति ने बीसवीं सदी में पर्याप्त विश्व प्रसिद्ध व्यक्ति उत्पन्न किये हैं और अगणित महत्त्वपूर्ण अनुसंधानों द्वारा मानवीय ज्ञान भण्डार को बढ़ाया है। पांच करोड़ की संख्या की जनसंख्या और 95 हजार वर्ग मील वाले इस छोटे से लगने वाले देश ने सारे संसार में अपना अस्तित्व महत्त्वपूर्ण बना रखा है। इसका कारण हम यहां की शिक्षा पद्धति में ही खोज सकते हैं, जिसके कारण यहां का बौद्धिक स्तर इतनी उच्चता के शिखर पर पहुंचा है। यह सही है कि भारत में हम ब्रिटिश शिक्षा-पद्धति का ही अनुसरण करते हैं, पर हमारी बौद्धिक तीक्ष्णता इस स्तर पर नहीं है, यह स्पष्ट है। यही नहीं, पिछले 30-40 वर्षों से हम सदैव ही अपनी शिक्षा पद्धति की कमियों व उद्देश्यों के प्रति पर्याप्त आलोचनात्मक बने रहे हैं। इसे हमने न केवल ब्रिटेन के स्तर से तुच्छ ही माना है, अपितु उसकी कीमत भी कम की है। अपनी शिक्षा-पद्धति के सम्बन्ध में इस प्रकार की हीन भावनाओं के बाद भी हम आज तक उसे इस रूप में नहीं ला सके हैं कि हमें लन्दन की दौड़ लगाने की मात्रा में थोड़ी भी कमी करनी पड़े। यह स्थिति सचमुच ही बड़ी दुःखद है। यहां की प्राथमिक शिक्षा कल्पना जगाने में प्रवीण है। माध्यमिक शिक्षा अभिरुचि की दिशा निश्चित करती हैं और विश्वविद्यालयीन शिक्षा विशेषज्ञता प्रदान करती है। शिक्षा के प्रत्येक स्तर पर समुचित मूल्यांकन की परम्परा के कारण छात्र व अध्यापक की दूरी नगण्य रहती है और उसका व्यवहार बड़ा सरल होता है, जो शिक्षण विधि को पोषित करता है। यहां की उपाधि (बी.ए.) का पाठ्यक्रम लगभग 15 वर्ष का होता है। कहीं-कहीं 16 वर्ष का भी होता है। उसके बाद तीन वर्ष में सीधे डाक्टरेट मिल सकती है या 1-1/2 वर्ष में एम.ए. प्राप्त किया जा सकता है। ये दोनों ही अनुसंधान-प्रधान उपाधियां हैं। यहां शिक्षक का कार्य केवल शिक्षण देना ही नहीं हैं, अनुसंधान करना भी है। सामान्य कक्षाओं के साथ अनुसंधान की परम्परा भी यहां अच्छी शिक्षण संस्था का एक प्रधान अंग मानी जाती है। इसके लिये समुचित आर्थिक प्रावधान किया जाता है। ब्रिटेन संसार में कई देशों की अपेक्षा कम उन्नत है। इसलिये यहां के विद्यार्थी को प्रयोगशाला में उपलब्ध साधनों से ही अनुसंधान के उपकरण की सज्जा करनी पड़ती है। यही कारण है कि ब्रिटेन में जितने नये उपकरण तैयार किये जाते हैं, उतने शायद अन्यत्र कहीं नहीं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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